तेरहवीं पोस्ट-ईमान वालों की जमाअ़त के साथ पुख़्ता वाबस्तगी

बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम
सुनन इब्ने माजह शरीफ़ में सुन्नत की पैरवी के बयान में ह़ज़रते ज़ैद इब्ने साबित रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो फ़रमाते हैं कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो अ़लैही व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया अल्लाह तआ़ला ख़ुश व ख़ुर्रम रखे उस शख़्स को जिस ने हमारी बात सुन कर आगे पहुंचाई क्योंकि बहुत से (इ़ल्मे)फ़िक़ह याद रखने वाले फ़क़ीह नहीं होते और बहुत से फ़िक़ह वाले ऐसे शख़्स तक पहुंचा देते हैं जो उन से भी बढ़ कर फ़क़ीह हो,तीन चीज़ों से मुसलमान को जी नहीं चुराना चाहिए,अ़मल ख़ालिस अल्लाह तआ़ला के लिए करना,अइम्मए मुसलेमीन की ख़ैरख़्वाही, और मुसलमानों की (सच्ची)जमाअ़त के साथ पुख़्ता वाबस्तगी।
(इ़ल्मे फ़िक़ह का मतलब होता है दीन की समझ का इ़ल्म)

काबा शरीफ़

इस ह़दीस शरीफ़ में दुआ़ के साथ इ़ल्मे फ़िक़ह का ज़िक्र फ़रमाने के बाद सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने तीन बातों का भी ज़िक्र फ़रमा कर इस बात की त़रफ़ साफ़ साफ़ इशारा फ़रमा दिया कि जिस के दिल में इ़ल्मे फ़िक़ह उतर जाएगा (यानी जो दीन को समझ जाएगा) वह तीन बातों की ज़रूर कोशिश करेगा।पहली यह कि अ़मल में रियाकारी ना हो।दूसरे यह कि जो मुसलमानों के अंदर स़ह़ीह़ ओ़लमा ए किराम, इमाम जो बाह़यात हैं या गुज़र चुके हैं (जिन्हें इजमाए उम्मत कहा जाता है)उन का भला चाहेगा।और तीसरी बात यह कि मुसलमानों में ईमान वालों की जो सच्ची जमाअ़त है उसे पहचान कर उसके साथ पक्के तौर पर जुड़ जाएगा और फिर उन के साथ जुड़ा रहेगा।
सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने यहां पर एक ख़ास बात सिखाई है कि कोई भी शख़्स चाहे वह किसी भी ज़माने का हो वह अकेला नहीं रह सकता उसे मुसलमानों की जमाअ़त को पहचान कर उस जमाअ़त के साथ ही रहना होगा।चुनांचे...
बुख़ारी शरीफ में फ़ितनों के बयान में ह़ज़रते इब्ने अ़ब्बास रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहोमा से मरवी है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया "जो शख़्स अपने अमीर से कोई एक बात देखे जो उस को नापसंद हो तो उस को चाहिए कि सबर करे,इस लिए की जो शख़्स जमाअ़त से एक बालिश्त जुदा हो गया और मर गया तो वह जाहिलीयत की मौत मरा।"

मदीना शरीफ़

तो इंसान यह नहीं बोल सकता कि मैं मुसलमानों की जमाअ़त या इजमाए़ उम्मत से अलग रहकर क़ुरआन व ह़दीस को मानूंगा।
और
सुनन दारमी शरीफ में मुक़द्दमे में यह ह़दीसे मौक़ूफ़ आई है "ह़ज़रते अ़ली कर्रमल्लाहो वज-हहुल करीम इरशाद फ़रमाते हैं,अगर कोई शख़्स ज़िंदगी भर रोज़े रखता है, ज़िंदगी भर नफ़िल पढ़ता है,फिर ह़जरे असवद और मुक़ामे इब्राहिम अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम के दरम्यान उसे क़त्ल कर दिया जाए(यानी ऐसी बुलंद व बाला जगह पर भी उसे क़त्ल कर दिया जाए)तो (भी) क़ियामत के दिन अल्लाह तआ़ला उस का ह़शर उन्हीं लोगों के साथ करे(गा) जिन्हें वह शख़्स हिदायत याफ़्ता समझता था।

ह़ज़रते अ़ली रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो के इस फ़रमान का कुछ ज़्यादा ही गहरा मतलब है।कुछ लोग अहले सुन्नत वल जमाअ़त के अ़लावा बदमज़हबों के गिरोहों को भी हिदायत वाला समझते हैं।जब कि ह़ज़रते अ़ली रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो के इस फ़रमान का साफ़ मतलब यह है कि हर शख़्स पर यह ज़रूरी है कि वह गुमराह फ़िरक़ों की गुमराही पहचाने और उन्हें गुमराह समझे।वरना चाहे वह शख़्स ज़ाहिर में कितना भी बड़ा नेक क्यों ना हो अल्लाह तआ़ला उस का ह़शर(क़ियामत के रोज़ अंजाम) उन्हीं लोगों के साथ करे(गा) जिन्हें वह हिदायत याफ़्ता समझता था।

इस्लाम

इंसान के लिए क़ुरआने पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा और इजमाए़ उम्मत तीनों को एक साथ पकड़े रखना बेह़द ज़रूरी है।क्योंकि यह तीनों आपस में एक दूसरे से ऐसे मिले हुए हैं जैसे जिस्म और जान एक दूसरे से मिले हुए रहते हैं।जिस तरह जिस्म से जान के निकलते ही जिस्म की मौत हो जाती है वैसे ही क़ुरआने पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा से इजमाए़ उम्मत को अलग करते ही आदमी के ईमान की मौत हो जाती है।


सुनन दारमी शरीफ में मुक़द्दमे में यह ह़दीसे मौक़ूफ़ आई है "आ़इज़ नामी एक ख़ातून बयान करती हैं कि मैंने स़ह़ाबीए रसूल़ ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने मसऊ़द रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो को मरदों और औ़रतों को यह नस़ीह़त इरशाद फ़रमाते हुए देखा है आप रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने इरशाद फ़रमाया "तुम में से जो भी मर्द या औ़रत फ़ितने(यानी इख़्तिलाफ़) का ज़माना पाए तो वह पहले (के) लोगों के त़रीक़े पर अ़मल करे, क्योंकि तुम लोग दीने फ़ित़रत के मानने वाले हो।
इस ह़दीस शरीफ़ में भी स़ह़ाबीए रसूल़ ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने मसऊ़द रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने यह नहीं फ़रमाया कि फ़ितनों के दौर में क़ुरआन पाक व अह़ादीस पर अ़मल करना, बल्कि यह फ़रमाया कि फ़ितने के दौर में पहले (के) लोगों के त़रीक़े पर अ़मल करना।इस से साफ़ मालूम हुआ कि आदमी को इख़्तिलाफ़ी मसलों में यह देखना चाहिए कि कौन पुराने बुज़ुर्गों के त़रीक़े पर है और कौन पुराने बुज़ुर्गों के त़रीक़े के ख़िलाफ़ है।
बदमज़हब ईमान वालों का ईमान छिनने के लिए यह कहते हैं कि हमें सिर्फ क़ुरआन व ह़दीस को मानना चाहिए जबकि स़ह़ीह़ बात यह है कि हमें क़ुरआन व ह़दीस को इजमाए उम्मत के अ़क़ीदे के मुताबिक़ मानना चाहिए...
चुनानचह त़िबरानी कबीर जिल्द सूवम में 4784 नम्बर कि ह़दीस शरीफ है कि हज़रत ज़ैद इब्ने साबित रदीयल्लाहो तआ़ला अ़न्हो फरमाते हैं कि सरकारे दो आ़लम हुज़ूर मोह़म्मदुर्रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि व आलिही वसल्लम का इरशाद है:क़ुरआन पाक कि तफ्सीर(explanation) अपनी राय से मत करो क्योंकि क़ुरआन पाक की तफ्सीर राय से करना कुफ़्र है।
(क़ुरआन पाक का तरजुमा करना यह भी तफ़्सीरे क़ुरआन पाक का एक ह़िस़्स़ा है।)

दरगाह अजमेर शरीफ़

दरगाह ह़ज़रत ख़वाजा क़ुत़बुद्दीन बख़तियार काकी रह़मतूल्लाहे तआ़ला अ़लैह

और
सुनन दारमी शरीफ में मुक़द्दमे में यह ह़दीस शरीफ भी आइ है "मोअ़तमिर अपने वालिद रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़न्हो का यह क़ौल नक़ल फ़रमाते हैं "रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआ़ला अलैहे व आलेही वसल्लम के क़ौल(ह़दीस शरीफ)कि वज़ाहत(तशरीह़)करते वक्त उतनी ही इह़तियात करनी चाहिए जितनी इह़तियात क़ुरआन पाक की तफ़्सीर करते वक़्त कि जाती है"।
तो क़ुरआन पाक का तर्जुमा या तफ़्सीर करनी हो या ह़दीस शरीफ़ की तशरीह़ करनी हो यह हर आदमी नहीं कर सकता। इसकी इजाज़त सिर्फ इजमाए उम्मत को है।
इजमाए उम्मत:- रसूलल्लाह स़ल्लल्लहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ज़मानए पाक से आज तक लगातार जो ईमान वालों की सच्ची जमाअ़त हर दौर में रही है उस जमाअ़त के ओ़लमा ए किराम को "इजमाए उम्मत" कहते हैं।
इजमाए उम्मत यानी बुज़ुर्गों की पैरवी के बारे में एक लम्बी स़ह़ीह़ ह़दीस शरीफ़ और पढ़ीये...

दरगाह ह़ज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रह़मतूल्लाहे तआ़ला अ़लैह

तिरमिज़ी शरीफ़ में मिसालों के बयान में

ह़ज़रत ह़ारिस अशअ़री रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो फ़रमाते हैं कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया "अल्लाह तआ़ला ने ह़ज़रते यह़या अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम को पांच चीज़ों का ह़ुक्म दिया कि ख़ुद भी उस पर अ़मल करें और बनी इसराईल को भी ह़ुक्म दें कि वह उन पर अ़मल पैरा हों।लेकिन ह़ज़रते यह़या अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम ने उन्हें पहुंचाने में ताख़ीर की तो ह़ज़रते ई़सा अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम ने उन से कहा कि अल्लाह तआ़ला ने आप अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम को पांच चीज़ों पर अ़मल करने और बनू इसराईल से उन पर अ़मल कराने का ह़ुक्म दिया है या तो आप अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम उन्हें ह़ुक्म दीजिए वरना मैं अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम ह़ुक्म देता हूं।ह़ज़रते यह़या अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम ने कहा मुझे अंदीशा है कि अगर आप अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम उन्हें पहुंचाने में सबक़त ले गए(आगे निकल गए)तो मुझे धंसाया जाएगा या अ़ज़ाब दिया जाएगा।फिर उन्होंने लोगों को बैतुलमुक़द्दस में जमा किया।यहां तक कि वह जगह भर गई और लोग उंची जगहों पर बैठ गए।फिर ह़ज़रते यह़या अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम ने फ़रमाया अल्लाह तआ़ला ने मुझे पांच चीज़ों का ह़ुक्म दिया है कि ख़ुद भी उन पर अ़मल करूं और तुम लोगों को भी उन पर अ़मल करने का ह़ुक्म दूं...

 1)तुम सिर्फ अल्लाह तआ़ला ही की इ़बादत करो,और किसी को उसका शरीक ना ठहराओ,और जो शख़्स अल्लाह तआ़ला के साथ शिर्क करता है उस की मिसाल उस शख़्स के जैसी है जिस ने अपने ख़ालिस सोने चांदी के माल से कोई ग़ुलाम ख़रीदा और उसे कहा कि यह मेरा घर है और यह मेरा पेशा है।तो इसे इख़्तियार करो और मुझे कमा कर दो।लेकिन वह काम करता और उसका मुनाफा किसी और को कमा कर दे देता।चुनांचे तुम में से कौन इस बात पर राज़ी है कि उस का ग़ुलाम इस तरह़ का हो।

2)अल्लाह तआ़ला ने तुम्हें नमाज़ का ह़ुक्म दिया।तो जब तुम नमाज़ पढ़ो तो किसी और जानिब तवज्जोह ना करो क्योंकि अल्लाह तआ़ला अपने नमाज़ पढ़ने वाले बंदे कि तरफ मोतवज्जह होता है जब वह नमाज़ पढ़ते हुए इधर उधर मोतवज्जह ना हो।

3)और मैं तुम्हें रोज़े रखने का ह़ुक्म देता हूं।इस की मिसाल उस शख़्स की तरह है जो एक गिरोह के साथ है, उस के पास मुश्क से भरी हुई थैली है।जिस की ख़ूशबू उस को भी पसंद है और दूसरे लोगों को भी।चुनानचह रोज़ेदार के मुंह की बू अल्लाह तआ़ला के नज़दीक उस मुश्क की ख़ूशबू से भी ज़्यादा पसंदीदा है।

4)मैं तुम्हें स़दक़ा देने का ह़ुक्म देता हूं।उस की मिसाल ऐसे शख़्स की तरह है जो दुश्मन की क़ैद में चला जाए और वह लोग उस के हाथ उस के गर्दन से बांध कर उसे क़त्ल करने के लिए उसे लेकर चल दें।जब वह उस की गर्दन उतारने लगें तो वह कहे कि मैं तुम लोगों को कुछ थोड़ा या ज़्यादाजो मेरे पास है,उसे बत़ौरे फ़िदया देता हूं।चुनानचह वह उन्हें फ़िदया देकर अपनी जान छुड़ा ले।

5)मैं तुम्हें अल्लाह तआ़ला के ज़िक्र की तलक़ीन करता हूं।इस की मिसाल उस शख़्स की तरह है, जिस के पीछे उस के दुश्मन लगे हों और वह भाग कर एक किले में घुस जाए और उन लोगों से अपनी जान बचा ले।इसी तरह़ कोई बन्दा ख़ुद को शैतान से अल्लाह तआ़ला के ज़िक्र के ए़लावा किसी चीज़ से नहीं बचा सकता।फिर नबी-ये अकरम स़ल्लल्लाहो अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया और मैं भी तुम्हें पांच चीज़ों का ह़ुक्म देता हूं,जिन का अल्लाह तआ़ला ने मुझे ह़ुक्म दिया है।(कि मैं तुम लोगों को इन बातों का ह़ुक्म दूं) 1)बात सुनना 2)इत़ाअ़त करना
(इजमाए उम्मत की बात सुनना और उनकी पैरवी करना)
3)जिहाद करना 4)हिजरत करना 5)मुसलमानों की जमाअ़त के साथ मुन्सलिक(जुड़े) रहना,इस लिए की जो जमाअ़त से एक बालिश्त के बराबर भी अलग हुआ उस ने अपनी गर्दन से इस्लाम की रस्सी निकाल दी मगर यह कि वह दोबारा जमाअ़त से मिल जाए।जिस ने ज़मानए जाहिलियत(इस्लाम से पहले के ज़माने) की बुराइयोंकी तरफ़ लोगों को बुलाया वह जहन्नम का ईंधन है।एक शख़्स ने अ़र्ज़ किया अगरचे उस ने नमाज़ पढ़ी और रोज़े रखे।आप स़ल्लल्लाहो अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया हां,लिहाज़ा लोगों को अल्लाह तआ़ला की तरफ बुलाओ जिस ने तुम्हारा नाम मुसलमान, मोमिन और अल्लाह तआ़ला का बन्दा रखा है।इमाम तिरमिज़ी शाफ़ई़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो फ़रमाते हैं यह ह़दीस शरीफ ह़सन स़ह़ीह़ ग़रीब है।

सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने इन अह़ादीस में इस्लाम का यह क़ानून साफ सिखाया है कि कोई भी शख़्स अकेला अपनी जगह पर नहीं रह सकता उसे मुसलमानों की सच्ची जमाअ़त को पहचान कर उस के साथ होना ज़रूरी है, और यह बात सिर्फ उसी के लिए मुमकिन है जिसे मुसलमानों की सच्ची जमाअ़त की पहचान का इ़ल्म ह़ास़िल हो।अल्लाह तआ़ला नस़ीब फ़रमाए।आमीन बत़ुफ़ैले नबीये करीम स़ल्लल्लहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम।
अगली पोस्ट पढ़ने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करें।

https://www.gchishti.com/2020/06/hayatunnabi.html

Post a Comment

0 Comments