पहली पोस्ट--सच्चों के साथ हो जाओ--1(फ़ैसला ता क़ियामत--1)

बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम
नह़मदुहू व नुस़ल्ली व नुसल्लिमु अ़ला रसूलिहिल करीम।
Kaba sharif, Sachchon ke saath ho jao
इस ब्लॉग को बनाने का अस़ल मक़स़द एक ख़ास सवाल का अच्छे से जवाब लिखना है।दरह़क़ीक़त यह सवाल ईमान वालों के सामने हजा़रों साल से रहा है।इस सवाल का जवाब जानना हर दौर के लोगों के लिए बहुत ज़रूरी रहा है।इस सवाल के जवाब को जाने बग़ैर ईमान की ह़िफा़ज़त बड़ी मुश्किल है।इसलिए हमारे मेहरबान व शफ़ीक़ रब तबारक व तआ़ला ने इस सवाल को और फ़िर सवाल के जवाब को पहले ही खोल कर समझा कर बता दिया है।सवाल यह है...

सवाल:-क्या फरमाते हैं ओ़लमाए दीन व मुफ्तियाने शरअ़ मतीन इस मसले में कि हम आज भी अपनी आंखों से देख रहे हैं और किताबों में भी यह मिलता है कि मुसलमानों में हमेशा हर दौर में बहुत से अलग अलग फिरक़े रहे हैं, जो कि एक दूसरे को काफिर बोलते रहे हैं और आज भी एक दूसरे को काफिर बोलते हैं, तो क्या अल्लाह तआ़ला ने ऐसी कोई खास निशानी बताई है या ऐसा कोई खास क़ानून, क़ाएदा अपने बन्दों को बताया या सीखाया है जिस के ज़रिए अल्लाह तआ़ला के बन्दे यह समझ सकें कि कौनसा फिरक़ा सच्चा और ईमान वालों का है और कौनसे फिरक़े ईमान कि राह से भटके हुए गुमराह या काफिर हैं?बताइए और सवाब पाइये।
जवाब:--रब तबारक व तआ़ला अपने बन्दों पर बन्दों से बढ़ कर महेरबान है।जो भी अल्लाह तआ़ला का बन्दा ईमान चाहता है अल्लाह तआ़ला उसे ईमान ज़रूर अ़ता फरमाता है।चुनांचे रब तआ़ला सूरह अ़ंकबूत शरीफ़ में इरशाद फ़रमाता है...
وَ الَّذِیۡنَ جَاہَدُوۡا فِیۡنَا لَنَہۡدِیَنَّہُمۡ سُبُلَنَا ؕ وَ اِنَّ اللّٰہَ لَمَعَ الۡمُحۡسِنِیۡنَ{ ۶۹}
यानी "और जिन्होंने हमारी राह में कोशिश की ज़रूर हम उन्हें अपने रास्ते दिखा देंगे,और बेशक अल्लाह तआ़ला नेकों के साथ है।"
इस आयते मुबारक के मुताबिक़ नेक आदमी वह है जो ख़ूद नेकों के रास्ते को अपनाने, नेकों के रास्ते पर चलने का ना सिर्फ अरमान रखता है बल्कि अल्लाह तआ़ला की राह पर चलने की कोशिश भी करता है।
Gumbade Khazra Sallallaho Alaihi Wa Aalihi Wa Sallam
 और तिरमिज़ी शरीफ़ में मनाक़िब के बयान में ह़ज़रते मुआ़ज़ इब्ने जबल रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से मरवी है कि उन्होंने अपने इन्तक़ाल के वक़्त तीन मरतबा फ़रमाया"ईमान और इ़ल्म अपनी जगह मौजूद हैं,जो उन्हें तलाश करेगा यक़ीनन पा लेगा।"सुबह़ानल्लाह
और अपने मह़बूब स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही वसल्लम के ज़रिए अल्लाह तआ़ला ने अपने बन्दों को बताया है कि "दीन बहुत आसान है"।(बुखारी शरीफ,ईमान का बयान)
उपर के सवाल में पूछने वाले ने सिर्फ इतना पूछा है कि सच्चे फ़िरक़े और ग़लत फ़िरक़ों में सच्चे फ़िरक़े की पहचान क्या है?लेकिन रब तबारक व तआ़ला ने अपनी कमाल महरबानी से ना सिर्फ अपने बन्दों को सच्चे फ़िरक़े की पहचान बताई है बल्कि यह भी बताया है कि बन्दा किस वजह से गुमराह होकर ग़लत फ़िरक़ों में शामिल हो जाता है। 
Jaliye Mubarak Hudhur Gous Paak
इस पहली पोस्ट में इसी पर बात करनी है।
चुनांचे रब तबारक व तआ़ला सूरह बक़रह शरीफ़ में इरशाद फ़रमाता है...
وَ مِنَ النَّاسِ مَنۡ یَّقُوۡلُ اٰمَنَّا بِاللّٰہِ وَ بِالۡیَوۡمِ الۡاٰخِرِ وَ مَا ہُمۡ بِمُؤۡمِنِیۡنَ ۘ﴿۸﴾
"और कुछ लोग कहते हैं कि हम अल्लाह तआ़ला और पिछले दिन (क़ियामत के दिन) पर ईमान लाए और वह ईमान वाले नहीं।"
Ajmer Sharif Sachchon ke saath ho jao
जो लोग स़िर्फ उपर से ईमान का दावा करते हैं लेकिन दरहक़ीक़त दिल से काफ़िर होते हैं उन्हें "मुनाफ़िक़" कहते हैं।चुनांचे उपर से ईमान का दावा और दिल में काफ़िर ऐसे मुनाफ़िक़ लोगों से क़ुरआन पाक में कई जगह अल्लाह तआ़ला ने अपने बन्दों को ख़बरदार फ़रमाया है।यहां तक कि ऐसे लोगों से ख़बरदार फ़रमाते हुए ऐसे लोगों के नाम से एक खास सूरह क़ुरआन पाक में सूरह मुनाफ़िक़ून के नाम से नाज़िल फ़रमाई है।चुनांचे सूरह मुनाफ़िक़ून शरीफ़ की छह इब्तिदाई आयात देखीए(अगर अ़रबी ना आता हो तो सिर्फ तरजुमा और तशरीह़Explanation पढ़ें)...

بِسۡمِ اللّٰہِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِیۡمِ

اِذَا جَآءَکَ  الۡمُنٰفِقُوۡنَ  قَالُوۡا نَشۡہَدُ اِنَّکَ لَرَسُوۡلُ اللّٰہِ ۘ  وَ اللّٰہُ یَعۡلَمُ  اِنَّکَ لَرَسُوۡلُہٗ ؕ وَ اللّٰہُ  یَشۡہَدُ  اِنَّ  الۡمُنٰفِقِیۡنَ لَکٰذِبُوۡنَ ۚ﴿۱﴾
यानी
अल्लाह तआ़ला के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान रह़मत वाला
जब मुनाफ़िक़ तुम्हारे ह़ुज़ूर ह़ाज़िर होते हैं कहते हैं कि हम गवाही देते हैं कि ह़ुज़ूर बेशक यक़ीनन अल्लाह तआ़ला के रसूल हैं; और अल्लाह जानता है कि तुम उसके रसूल हो, और अल्लाह गवाही देता है कि मुनाफ़िक़ ज़रूर झूटे हैं।【1】
मतलब यह कि इस पहली आयते मुबारक में ही रब तबारक व तआ़ला ने स़ाफ़ फ़रमा दिया कि इन मुनाफ़िक़ों का ईमान का दावा ही झूटा है।

اِتَّخَذُوۡۤا  اَیۡمَانَہُمۡ  جُنَّۃً  فَصَدُّوۡا عَنۡ سَبِیۡلِ اللّٰہِ ؕ اِنَّہُمۡ سَآءَ  مَا کَانُوۡا یَعۡمَلُوۡنَ ﴿۲﴾

ذٰلِکَ بِاَنَّہُمۡ  اٰمَنُوۡا ثُمَّ  کَفَرُوۡا  فَطُبِعَ عَلٰی  قُلُوۡبِہِمۡ  فَہُمۡ  لَا  یَفۡقَہُوۡنَ ﴿۳﴾
यानी
और उन्होंने अपनी क़समों को ढाल ठहरा लिया तो अल्लाह की राह से रोका, बेशक वो बहुत ही बुरे काम करते हैं।【2】
 यह इसलिये कि वो ज़बान से ईमान लाए फिर दिल से काफ़िर हुए तो उनके दिलों पर  मोहर कर दी गई तो अब वो कुछ नहीं समझते【3】
मतलब इन दोसरी और तीसरी आयते मुबारका में रब तबारक व तआ़ला ने स़ाफ़ बताया कि यह लोग सिर्फ ज़बानी तौर पर ईमान का झूटा दावा करते हैं यहां तक कि झूटी क़सम भी खाते हैं, लोगों को अल्लाह तआ़ला की राह से भी रोकते हैं दरह़क़ीक़त यह लोग बहुत बुरे काम करते हैं तो इन की बुरी ह़रकतों की वजह से अल्लाह तआ़ला ने इन के दिल पर लअ़नत की मोहर मार दी है इस लिए अब यह लोग ईमान की बात नहीं समझ सकते।
अगर कोई यह कहे कि मुनाफ़िक़ सिर्फ सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ज़माने में थे बाद में नहीं।तो उसे यह अह़ादीसे शरीफ़ा पढ़नी चाहिए...
मुस्नद अह़मद शरीफ में ह़ज़रत अबूसई़द ख़ुदरी रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से मरवी यह ह़दीसे मुतवातिर आई है कि सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि तुम में एक क़ौम निकलेगी जिन की नमाज़ों के आगे तुम अपनी नमाज़ों को उनके रोज़ों के सामने अपने रोज़ों को ह़क़ीर (कमतर) समझोगे,लेकिन वह लोग दीन से ऐसे निकल जाएंगे जैसे तीर शिकार से(आरपार) निकल जाता है।और आदमी अपना तीर पकड़ कर तीर के फल(आगे की नोक) को देखता है तो कुछ(खून) नज़र नहीं आता।फिर उसके पट्ठे को देखता है तो वहां भी कुछ नज़र नहीं आता,फिर उसकी लकड़ी को देखता है तो वहां भी कुछ नज़र नहीं आता,फिर उस के पर को देखता है तो वहां भी कुछ नज़र नहीं आता।
मतलब यह कि जिस तरह तीर शिकार के आरपार गुज़रने के बाद भी बिल्कुल खून वगैरह से जैसे अनछुआ नज़र आता है वैसे ही यह बदमज़हब लोग दीन से बिल्कुल अनछुए और बेफ़ैज़ रह जाएंगे।
और
स़ह़ीह़ मुस्लिम शरीफ़ में ज़कात के बयान में ह़ज़रते अबूज़र रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से रिवायत है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया"अ़नक़रीब(जल्द ही) मेरे बाद मेरी उम्मत से ऐसी क़ौम होगी जो क़ुरआने पाक पढ़ेगी लेकिन वह उस के ह़लक़ से आगे नहीं बढ़ेगा(यानी गले से नीचे दिल में नहीं उतरेगा) और वह दीन से इस तरह निकल जाएगी जैसे तीर निशाने से निकल जाता है,फिर वह दीन में न लौटेगी,वह मख़लूक़ में सबसे ज़्यादा शरीर(शर व फ़साद वाली) व बदकिरदार(बुरे अख़्लाक़ वाली) होगी।
इन अह़ादीस में साफ़ बताया गया है कि यह मुनाफ़िक़ों की क़ौम रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ज़मान-ए-मुबारक के बाद भी होगी।उपर सूरह मुनाफ़िक़ून शरीफ़ की तीसरी आयत और मुस्लिम शरीफ़ की ह़दीस शरीफ़ में साफ़ बता दिया गया है कि इन लोगों के दिल पर अल्लाह तआ़ला की तरफ़ से मोहर मार दी जाती है इस लिए यह लोग ईमान नहीं लाते।(मतलब यह कि इन में से जो बदमज़हबीयत को दिल की गहराई से पसंद कर लेते हैं तो अल्लाह तआ़ला की त़रफ़ से उन के फ़ासिक़ होने का फ़ैसला हो जाता है और उन के लिए हिदायत के रास्ते बंद कर दिये जाते हैं।)
इस मौज़ू पर और भी अह़ादीसे शरीफ़ा आई हैं।जो इंशाअल्लाह बाद में इस ब्लॉग में लिखीं जाएंगीं।
आगे सूरह मुनाफ़िक़ून शरीफ़ की चौथी आयते मुबारक में रब तबारक व तआ़ला इरशाद फ़रमाता है...

وَ اِذَا  رَاَیۡتَہُمۡ  تُعۡجِبُکَ اَجۡسَامُہُمۡ ؕ وَ اِنۡ یَّقُوۡلُوۡا  تَسۡمَعۡ  لِقَوۡلِہِمۡ ؕ کَاَنَّہُمۡ خُشُبٌ مُّسَنَّدَۃٌ ؕ یَحۡسَبُوۡنَ  کُلَّ صَیۡحَۃٍ  عَلَیۡہِمۡ ؕ ہُمُ  الۡعَدُوُّ  فَاحۡذَرۡہُمۡ ؕ قٰتَلَہُمُ   اللّٰہُ ۫ اَنّٰی  یُؤۡفَکُوۡنَ  ﴿۴﴾

यानी
और जब तू उन्हें देखे उनके जिस्म तुझे भले मालूम हों और अगर बात करें तो तू उनकी बात ग़ौर से सुने मानो वो कड़ियाँ हैं दीवार से टिकाई हुई हर बलन्द आवाज़ अपने ही ऊपर ले जाते हैं वो दुश्मन हैं तो उनसे बचते रहो अल्लाह उन्हें मारे कहाँ औंधे जाते हैं【4】
मतलब
सूरह मुनाफ़िक़ून शरीफ़ की चौथी आयते मुबारक में यह बताया गया है कि जब यह मुनाफ़िक़ लोग बोलते हैं तो ऐसा मीठा बोलते हैं कि सुन्ने वाला उन लोगों की बातें सुनता ही रह जाता है।चुनांचे...
सुनन इब्ने माजह शरीफ़ में सुन्नत की पैरवी के बयान में ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह इब्ने मसऊ़द रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से मरवी है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया "आख़िर ज़माने में कुछ लोग निकलेंगे जो नौजवान होंगे, बेवक़ूफ़ होंगे।लोगों में सबसे बेहतर बातें करेंगे।क़ुरआन पाक पढ़ेंगे, जो उन के ह़लक़ूम से नीचे नहीं उतरेगा(यानी ह़लक़ से नीचे उन के दिल में नहीं दाख़िल होगा)इस्लाम से इस तरह़ बेफ़ैज़ रह जाएंगे जिस तरह तीर शिकार से बेनिशान गुज़र जाता है।जो उनसे मिले उनसे (मैदाने जंग) में क़ताल करे,क्योंकि उन को क़त्ल करना क़त्ल करनेवाले के लिए अल्लाह तआ़ला के यहां अज्र(सवाब) का सबब है।"
इस ह़दीस शरीफ़ में रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने साफ़ तौर पर ख़बरदार फ़रमाया है कि इन मुनाफ़िक़ों की बातों में हर्गिज़ ना आना क्योंकि यह लोग दीन से बेफ़ैज़ काफ़िर हैं।
आगे इनके मीठे बोल के ज़िक्र के बाद रब तबारक व तआ़ला साफ़ इरशाद फ़रमाता है " वो दुश्मन हैं तो उनसे बचते रहो अल्लाह उन्हें मारे कहाँ औंधे जाते हैं"।यानी यह मुनाफ़िक़ लोग "जहन्नम" में उल्टे जाते हैं।यानी ह़ुक्म तो यह है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के पास जाओ और उनकी अत़ाअ़त करके जन्नत ह़ासिल करो।उन्हें वसीला बना कर रब तबारक व तआ़ला से बख़्शिश हासिल करो।रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की अल्लाह तआ़ला के दरबार में शफ़ाअ़त ह़ास़िल करो।लेकिन यह दुश्मने रसूल लोग रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के पास आने के बजाए उल्टा घूम कर जहन्नम की राह चल पड़ते हैं।चुनांचे आगे की पांचवीं आयते मुबारक में अल्लाह तआ़ला ने इनकी आ़दत बताई है 
وَ  اِذَا  قِیۡلَ  لَہُمۡ  تَعَالَوۡا  یَسۡتَغۡفِرۡ لَکُمۡ رَسُوۡلُ  اللّٰہِ  لَوَّوۡا رُءُوۡسَہُمۡ وَ رَاَیۡتَہُمۡ یَصُدُّوۡنَ وَ ہُمۡ مُّسۡتَکۡبِرُوۡنَ ﴿۵﴾
यानी
 और जब उन से कहा जाए कि आओ  अल्लाह के रसूल तुम्हारे लिये माफ़ी चाहें तो अपने सर घुमाते हैं और तुम उन्हें देखो कि ग़ौर करते हुए मुंह फेर लेते हैं【5】
आज भी इन मुनाफ़िक़ों के पैरुकार मौजूदा मुनाफ़िक़ लोग वसील-ए-रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के पक्के मुख़ालिफ़ हैं।मआ़ज़ल्लाह तआ़ला
इस पर अल्लाह तआ़ला ने इन्हें यह वई़द सुनाई है कि इन की हर्गिज़ बख़्शिश ना होगी।

سَوَآءٌ  عَلَیۡہِمۡ  اَسۡتَغۡفَرۡتَ لَہُمۡ  اَمۡ لَمۡ تَسۡتَغۡفِرۡ لَہُمۡ ؕ لَنۡ یَّغۡفِرَ اللّٰہُ  لَہُمۡ ؕ اِنَّ اللّٰہَ  لَا یَہۡدِی الۡقَوۡمَ الۡفٰسِقِیۡنَ ﴿۶﴾
यानी
उनपर एक सा है तुम उनकी माफ़ी चाहो या न चाहो अल्लाह उन्हें हरगिज़ न बख़्शेगा,बेशक अल्लाह फ़ासिक़ों को राह नहीं देता【6】
मतलब यहां अल्लाह तआ़ला अपने ह़बीब स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की शाने रह़मत को ज़ाहिर फ़रमाता है कि ऐ!मेरे मह़बूब स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम तुम्हें मैं ने रह़मतुल्लिलआ़लमीन स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम बना कर भेजा है इस लिए आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम तो यही चाहते हो कि यह मुनाफ़िक़ सुधर जाते और अ़ज़ाब से छुटकारा पा जाते।लेकिन इन की बद आ़माली इतनी सख़्त है की न इन्हें हिदायत मिलेगी न इन की निजात होगी।

दरअस़ल इन मुनाफ़िक़ों या बदमज़हबों का मामला पहले की उम्मतों में भी था।पहले के ईमान वालों को भी अपने ईमान की ह़िफा़ज़त के लिए इन बदमज़हबों की पहचान ह़ास़िल करनी पड़ती थी. चुनांचे...
तिरमिज़ी शरीफ़ में ईमान के बयान में ह़ज़रते अबूहुरैरह रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से मरवी है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया "यहूदी इकहत्तर या बहत्तर फ़िरक़ों में तक़सीम हो गए इसी तरह निसारा(ई़साई)भी,और मेरी उम्मत तिहत्तर फ़िरक़ों में तक़सीम होगी।(ह़ज़रत इमाम तिरमिज़ी रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह फ़रमाते हैं)इस बाब में ह़ज़रते सअ़द,ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह इब्ने अ़मर,और ह़ज़रते औ़फ़ इब्ने मालिक रिदवानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न से भी रिवायत है।ह़ज़रत अबूहुरैरह रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो की ह़दीस शरीफ़(यानी यह ह़दीस शरीफ़)ह़सन स़ह़ीह़ है।
तो पिछली उम्मतों में जो गुमराह फ़िरक़े गुज़र चुके हैं या इस उम्मत में जो गुमराह फ़िरक़े हैं उन्हें"बदमज़हब" कहा जाता है।
Dargah Hazrat Khwaja Garib Nawaz
तो पहली बात यह कि जो यह सवाल पूछा गया है कि इतने सारे फ़िरक़ों के बीच सच्चा फ़िरक़ा कौन सा है? इस सवाल के बारे में तो रब तबारक व तआ़ला ने अपनी कमाल रह़मत से हमें पहले से ही क़ुरआन पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा में ख़बरदार कर रखा है।और दूसरी बात यह है कि रब तबारक व तआ़ला ने इस सवाल का जवाब भी अच्छे से समझा कर हमें पहले ही दे रखा है कि सच्चे फ़िरक़े की निशानियां क्या हैं।और तीसरी बात यह है कि रब तबारक व तआ़ला ने चंद ख़ास इ़ल्म(उ़लूम) और कुछ ख़ास बातें बताई हैं जिन को ना सीखने,ना समझने, ना मानने की वजह से इंसान गुमराह हो कर बदमज़हब हो जाता है।तो इस सवाल का जवाब जानना और साथ ही वह चंद ख़ास इ़ल्म(उ़लूम) और वह ख़ास बातें जिन को ना सीखने ना मानने की वजह से इंसान गुमराह हो कर बदमज़हब हो जाता है, क़ियामत तक हर इंसान को सीखना और समझना ज़रूरी है।इस ब्लॉग को बनाने का अस़ल मक़स़द भी इन्हीं दो बातों को बताना और सिखाना है इस लिए इस ब्लॉग पर "फ़ैस़ला ता क़ियामत" के नाम से इंशाअल्लाह तआ़ला कई क़िस्त़ों(सीरीज़) में यह बयान डालने का इरादा है।"फ़ैस़ला ता क़ियामत" की इस पहली क़िस्त में सवाल के बारे में बात हुई।अब दूसरी क़िस्त में इंशाअल्लाह तआ़ला इस सवाल का जवाब डाला जाएगा कि सच्चे ईमान वाले गिरोह की पहचान क्या है।
आगे ह़ज़रत इमाम ग़ज़ाली रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह की मशहूर किताब अह़याउल-उ़लूम से अपने अहलो अ़याल को इ़ल्मे दीन सिखाने के बारे में जो बयान आया है उसे मुख़्तसर तौर पर पढ़ें।
हर आदमी पर एक ख़ास ज़िम्मेदारी अपने अहलो अ़याल को इ़ल्मे दीन सिखाने की है और इ़ल्मे दीन में सबसे पहले इ़ल्मे अ़क़ाए़द है।जिसके ज़रीये ईमान कि हिफाज़त होती है।अपने अहलो अ़याल को जाहिल रखने पर वई़द पढि़ए।ह़ज़रत इमाम ग़ज़ाली रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह अपनी मशहूर किताब अह़याउल-उ़लूम में निकाह़ की आफतों के बयान में नक़ल फरमाते हैं….
ह़दीसे पाक में है कि"बन्दह बारगाहे ईलाही में सबसे बड़ा यह गुनाह लेकर ह़ाज़िर होता है कि उसके अहलो अ़याल जाहिल हों"।
आगे इसी बयान में ह़ज़रत इमाम ग़ज़ाली रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह ने एक ख़ास ह़दीस शरीफ की तरफ ध्यान दिलाया है,चुनानचह ह़ज़रत इमाम ग़ज़ाली रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह फरमाते हैं"इस में भी यानी निकाह़ में ख़तरा है,क्योंकि वह निगेहबान यानी निगरां है, उस से उस कि रिआ़या (मातह़तों)के बारे में सवाल होना है। ह़दीस शरीफ यह है….
बुख़ारी शरीफ में ग़ुलाम आज़ाद करने के बयान में यह ह़दीस शरीफ आइ है कि ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने उ़मर रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न से मरवी है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो अ़लैही व आलिही व सल्लम ने इरशाद फरमाया कि तुम में से हर शख़्स निगरां है और उस से उस कि रऐ़यत(प्रजा) के बारे में सवाल पूछा जाएगा,वह शख़्स जो लोगों का सरदार है उस से लोगों के बारे में सवाल होगा, मर्द अपने घर वालों का निगरां है और उस से उन के बारे में सवाल होगा,औ़रत अपने शौहर के घर और उस के बच्चों की मुह़ाफिज़ है,उस से उन के बारे में पूछा जाएगा,ग़ुलाम अपने आक़ा के माल का निगरां है उस से उस बारे में पूछ होगी,सुन लो कि तुम में से हर एक ह़ाकिम है और उस कि रऐ़यत(प्रजा)के बारे में उस से सवाल होगा।
तो मर्द से अपने बीवी बच्चों यानी अहलो अ़याल के बारे में दूसरी बातों के साथ उन को जाहिल रखने पर भी सवाल होगा।
आगे इसी बयान में ह़ज़रत इमाम ग़ज़ाली रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह ने एक ख़ास ह़दीस शरीफ भी नक़ल फरमाई है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि व आलेही व सल्लम ने इरशाद फरमाया कि बन्दे का यही गुनाह काफी है कि वह अपने अ़याल यानी अपनी परवरिश में रहने वाले लोगों को ज़ाएअ़ कर दे यानी खो दे,गंवा दे।
यहां गुनाह काफी होने का साफ मतलब यह है कि आदमी को क़ियामत के रोज़ बर्बाद करने के लिए यही गुनाह काफी है कि वह अपने अ़याल को ज़ाएअ़ कर दे।
अब इस से बड़ा खोना, गंवाना क्या होगा कि बन्दा अपने अहलो अ़याल को जाहिल रख कर, बदमज़हबीयत में ढकेल कर जहन्नमी बना दे।चुनांचे ह़ज़रत इमाम ग़ज़ाली रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह आगे सूरह तह़रीम शरीफ कि यह आयते मुबारक नक़ल फरमाते हैं…
یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا قُوۡۤا اَنۡفُسَکُمۡ وَ اَہۡلِیۡکُمۡ نَارًا وَّ قُوۡدُہَا النَّاسُ وَ الۡحِجَارَۃُ
अपनी जानों और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ(यानी जहन्नम कि आग से बचाओ)जिस का इंधन आदमी और पत्थर हैं।
तो हर इंसान पर यह ज़िम्मेदारी है कि वह ख़ुद को और अपने घर वालों को हर तरह की बदमज़हबीयत के फ़ितने से बचाये।तो बदमज़हबीयत से बचने के लिए यह बयानात "फैसला ता क़ियामत" सिरीज़ में मैं एक सुन्नी मुसलमान लिख कर अपने ब्लॉग(https://www.gchishti.com/) पर डाल रहा हूं, जिसमें इस बात की ज़्यादा से ज़्यादा कोशिश करूंगा, कि वह पोइंट्स जिनकी वजह से लोग भटक कर वहाबी या किसी भी क़िस्म के बदमज़हब बनते हैं, अच्छे से समझा सकूं।ताकि हर सुन्नी मुसलमान अपनी ज़िम्मेदारी से पार होने के लिए अपने अहलो अ़याल को यह बयान "फैसला ता क़ियामत" पढ़ कर सुना सके और पढ़वा सके।या अपने वारिसों को वसीयत कर सके कि वह "फैसला ता क़ियामत" बयान पढ़ लें।ताकि रोज़े क़ियामत अपनी ज़िम्मेदारी से बहुत कुछ पार हो कर अल्लाह तआ़ला के दरबार में पहुंचे।
कोई भी यहां से टेक्स्ट कॉपी करके और जगह पेस्ट ना करे क्योंकि इस ब्लॉग पर जो बयानात हैं वह काफ़ी अहम और नाज़ुक क़िस्म के बयानात हैं।कॉपी पेस्ट करने की शक्ल में इन बयानात में आगे बदमज़हबों के हाथों इस में तब्दीली चेंजिंग किए जाने का इमकान है।इस ब्लॉग पर लिखे बयानात पढ़ कर इस की लिंक दोसरों से ज़रूर शेयर करें।लिंक शेयर करने के लिए या तो पेज की लिंक डायरेक्ट शेयर करें या निचे के लाइक (Like) बटन पर क्लिक करें तो फ़ेसबुक, व्हाट्सएप वगैरह वगैरह के आइकोन आ जाएंगे, फिर वहां से लिंक शेयर की जा सकती है।
यह"ABOUT US" पेज "फैसला ता क़ियामत" सिरीज़ की पहली क़िस्त है।इस क़िस्त में वह सवाल है जिस पर आगे की क़िस्तों में बयान होना है।इस ब्लॉग पर हर हफ़्ते कम स कम दो पोस्ट डालने का इरादा है।अल्लाह तआ़ला ह़ुज़ूर ख़्वाजा रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह के स़दक़े व त़ुफ़ैल में पार लगाए।अल्लाह तआ़ला ह़ुज़ूर ख़्वाजा गरीब नवाज़ रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह के स़दक़े व त़ुफ़ैल में बदमज़हबों के शर से बचाए।आमीन!
अगली पोस्ट पढ़ने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करें...
https://www.gchishti.com/2019/09/2-2.html

Post a Comment

0 Comments