चौदहवीं पोस्ट-नबी ज़िंदा हैं।

बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम
नबी ज़िंदा हैं
(1) ह़ज़रते अबू दरदा रद़ीयल्लाहु तआ़ला अ़नहु से रिवायत है कि रसूले करीम अलैहिस़्स़लातु वत्तस्लीम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआ़ला ने ज़मीन पर नबियों अ़लैहिमुस्सलाम के जिस्मों को खाना ह़राम फ़रमा दिया है।लिहाजा़ अल्लाह तआ़ला के नबी ज़िंदा हैं।रोज़ी दिए जाते हैं।
(इब्ने माजा, जनाज़ों का बयान -मिशकात सफा 1211)
ह़ज़रत शैख़ अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिस देहलवी रह़मतुल्लाहि तआ़ला अ़लैह इस ह़दीस शरीफ़ की शरह़ में लिखते हैं कि अल्लाह तआ़ला के नबी दुनियवी ज़िंदगी की हक़ीक़त के साथ ज़िंदा हैं।
(अशिअ़तुल्लम्आ़त जिल्द 1 सफ़ा 576)
और ह़ज़रत मुल्ला अ़ली क़ारी अ़लैहिर्रह़मतुलबारी इस ह़दीस शरीफ़ की शरह़ में फ़रमाते हैं कि नबी की दूनियवी और बाद वफ़ात को ज़िंदगी में कोई फ़र्क़ नहीं इसीलिए कहा जाता है औलिया अल्लाह मरते नहीं बल्कि एक घर से दूसरे घर की तरफ चले जाते हैं।
(मिरक़ात जिल्द 2 सफा 212)
Darba-E-Rasoolallaah Sallallaho Ta'la A'laihi Wa Aalihi Wa Sallam
(2) ह़ज़रते औस इब्ने औस रद़ीयल्लाहु तआ़ला अ़नहु ने कहा कि सरकारे अक़दस स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआ़ला ने नबियों अ़लैहिमुस्सलाम के जिस्मों को ज़मीन पर खाना ह़राम फ़रमा दिया है।
 (अबू दाऊद-निसाई- दारमी-बैहिकी - इब्नेमाजा-मिशकात सफा 120)
ह़ज़रते मुल्ला अ़ली क़ारी इस ह़दीस की शरह़ में फ़रमाते हैं कि नबी अपनी क़ब्रों में ज़िंदा हैं ।
(मिरक़ात-जिल्द 2 सफ़ा 209)
और ह़ज़रते शैख़ अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिस देहलवी बुख़ारी रह़मतुल्लाहि तआ़ला अ़लैह इसी ह़दीस शरीफ़ की शरह़ में फ़रमाते हैं कि नबी ज़िन्दा हैं और उन की ज़िन्दगी सब मानते आये हैं । कोई
ख़िलाफ़ नहीं है । उन की ज़िंदगी जिस्मानी हकीकी दुनियावी है ।
शहीदों की तरह सिर्फ माअ़नवी और रुह़ानी नहीं है।
Madina Munavvara Shareef
कुछ ज़रुरी मसले
(1) नबी वफ़ात के बाद दुनियवी ज़िंनदगी की ह़क़ीक़त के साथ ज़िंदा रहते हैं इसीलिए मेअ़राज की रात में जब सरकारे अक़दसस़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही वसल्लम बैतुलमुक़द्दस पहुँचे तो नबीयों को वहाँ नमाज़ पढ़ाई। अगर नबी वफ़ात के बाद ज़िंदा न होते तो बैतुलमुक़द्दस में नमाज़ पढ़ने के लिए कैसे आते।
(2) नबियों अ़लैहिमुस़्स़लातो वस्सलाम की जिंदगी जिस्मानी ह़क़ीक़ी दुनियवी है शहीदों की तरह सिर्फ माअ़नवी और रूह़ानी नहीं है इसीलिए नबी की वफात
के बाद उन का छोड़ा हुआ माल बाँटा नहीं जाता और न उन की औ़रतें दूसरे से निकाह़ कर सकती हैं और शहीदों का छोड़ा हुआ माल बंटता है और उन की औ़रतें इद्दत गुज़ारने के बाद दूसरे से निकाह़ कर सकती हैं।
Darbare Baghdad Shareef
(3) नबियों अ़लैहिमुस़्स़लातो वस्सलाम की ज़िंदगी बरज़खी नहीं बल्कि दुनियवी है बस फ़र्क़ सिर्फ यह है कि हम जैसे लोगों की निगाहों से छुपे हैं ।
मराक़िल फ़लाह़ में है कि यह बात बड़े-बड़े तह़क़ीक़ करने वाले आ़लिमों के नज़दीक साबित है कि सरकारे अक़दस स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम (ह़क़ीक़ी दुनियवी ज़िंदगी के साथ) ज़िंदा हैं। उन को रोज़ी दी जाती है।तमाम लज़्ज़त वाली चीज़ों का मज़ा पाते हैं, लेकिन जो लोग कि ऊँचे दरजों तक नहीं पहुँचते हैं उन की
आँखों से छुपे हैं (तहतावी सफा 447)
{इसका स़ाफ मत़लब यह भी होता है कि जो लोग बुलंद मरतबा हैं, वह अंम्बिया अ़लैहिमुस़्स़लातो वस्सलाम को ज़िंदा देखते हैं}
और नसीमुर्रियाज़ शरह़ शिफ़ा काज़ी अ़याज़ जिल्द 1 सफ़ा 196 में है कि नबी ह़क़ीक़ी ज़िंदगी के साथ अपनी क़ब्रों में ज़िंदा हैं।
और मिरक़ात शरह़ मिशकात जिल्द 1 सफा 284 में है कि "बेशक ह़ुज़ूर स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ज़िंदा हैं उन्हें रोज़ी दी जाती है और उन से हर क़िस्म की मदद माँगी जाती है।"
और ह़ज़रते शैख़ अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिस देहलवी बुखारी रह़म-तुल्लाहि तआ़ला अ़लैह ने अपने ख़त "सुलूक अक़रबुस्सुबुल बित्तवज्जुहि इला सैइदिर्रुसुल मए़ अख़बारुल अख़्यार" जो कि रह़ीमिया देव बंद की छपी हुई है, सफ़ा 161 में फ़रमाया कि उम्मत के आ़लिमों में बहुत से इख़्तिलाफ़ और कई मज़हब होते हुए किसी को इस मसले में कोई, इख़्तिलाफ़ नहीं है कि आं ह़ज़रत स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम (दुनियवी) जिंदगी की ह़क़ीक़त के साथ क़ाइम और बाक़ी हैं। नबी की इस जिंदगी में मज़ाज की मिलावट और फेरफार का वहम नहीं है और उम्मत के कामों पर ह़ाज़िर व नाज़िर हैं, और ह़क़ीक़त(रूह़ानीयत) चाहने वालों के लिए और उन लोगों के लिए जो कि आं ह़ज़रत स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की जानिब तवज्जुह रखते हैं ह़ुज़ूर उन को फ़ाइदा पहुँचाने वाले और परवरिश करने वाले हैं।(सुबह़ानल्लाह)
(4) पारा 23 आख़िरी रुकू की आयत में अल्लाह तआ़ला ने जो ह़ुज़ूर स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के लिए मौत आना जिक्र फ़रमाया तो उस का मतलब इस दुनिया से जाना है और ह़दीसों में वफात के बाद की ह़क़ीक़ी ज़िंदगी मुराद है ।
(यह बयान अनवारुल ह़दीस किताब से लिया गया है)
Darbar-E-Khwaja Radhiyallaho Ta'la A'nho Ajmer Shareef

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