बारहवीं पोस्ट--अह़ादीसे शरीफ़ा में शहीद

बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम
नह़मदुहू व नुस़ल्ली व नुसल्लिमु अ़ला रसूलिहिल करीम।
Masjide Nabwi Sallallaho Tala Alaihi Wa Aalihi Wa Sallam
मिशकात शरीफ़ जिल्द दूवम में जनाज़ों के बयान बुख़ारी शरीफ़ और मुस्लिम शरीफ़ के ह़वाले से शोहदा के बारे में एक ह़दीस शरीफ़ आई है जिस की तशरीह़ EXPLANATION करते हुए हमारे अहले सुन्नत वल जमाअ़त के ओ़लमाए किराम ने शहीदों की और भी बहुत सी क़िस्में नक़ल फ़रमाई हैं। जिन्हें जानना हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है।उस में हमारे अहले सुन्नत वल जमाअ़त के ओ़लमाए किराम ने ह़दीस शरीफ़ के ह़वाले से यह भी नक़ल फ़रमाया है कि जो मुसलमान अपने मर्ज़(बीमारी) में ह़ज़रते यूनुस अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम की यह दुआ़ "ला इला-ह इल्ला अं-त सुब-ह़ा-न-क इंन्नी कुंन्तो मिनज़्ज़ालिमीन" चालीस मरतबा पढ़े और उसी बीमारी में इंतक़ाल कर जाए तो उसे शहीद का सवाब दिया जाता है।और अगर उस मर्ज़ से उसे छुटकारा मिल जाए तो इस ह़ाल में सेह़त मंद होता है कि उस की मग़फ़िरत हो चुकी होती है।
आजकल बहुत से लोगों को डायबिटीज ब्लड प्रेशर थायराइड अस्थमा वगैरह बीमारियां होती हैं जो कि लाइलाज के त़ौर पर मशहूर हैं।तो अगर इन या इन जैसी बीमारियों वाले ह़ज़रते यूनुस अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम की यह दुआ़ पढ़ लें तो इंशाअल्लाहुलअ़ज़ीज़ उसे अपनी मौत पर शहीद का सवाब मिलेगा।
ह़दीस शरीफ़ यह है...
 ह़ज़रते अबूहुरैरह रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहु रावी हैं कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया शोहदा पांच हैं (1)त़ाऊ़न ज़दह यानी प्लेग की बीमारी में मरने वाला (2)पेट की बीमारी में मरने वाला (3)पानी में बेइख़्तियार डूब कर मर जाने वाला (4)दीवार या छत के निचे दब कर मर जाने वाला (5)और अल्लाह तआ़ला की राह में शहीद होने वाला।
तशरीह़ EXPLANATION...
पानी में डूब कर मर जाने वाले, यानी उस शख़्स को शहादत का सवाब मिलेगा जो बेइख़्तियार व बिला क़स़द पानी में डूब गया हो,यानी ब इरादा ख़ूद पानी में ना डूबे।
इसी त़रह़ अगर दरया में कश्ती डूब जाए या टूट जाए और सब लोग या कुछ लोग दरया में डूब जाएं तो उन में से सिर्फ उसी को शहादत का सवाब मिलेगा जो गुनाह के इरादे से कश्ती में ना बैठा हो।
Kaba Sharif Makka Muazzama
इस ह़दीस शरीफ़ में पांच क़िस्म के शहीदों का ज़िक्र किया गया।इस लिए यह बात जान लेनी चाहिए कि ह़क़ीक़ी शहीद सिर्फ वही शहीद है जो अल्लाह तआ़ला की राह में अपनी जान क़ुरबान कर दे।शहीदों की दीगर क़िस्में ह़ुक्मी हैं।यानी वह मरने वाले ह़क़ीक़ी शहीद तो नहीं होते हां उन की बेबसी व बेकसी की मौत की बिना पर उन्हें शहादत का सवाब मिलता है।
इस मौके पर इस बात की वज़ाहतEXPLANATION भी ज़रूरी है कि यहां चार क़िस्म के ह़ुक्मी शहीदों का ज़िक्र किया गया है,इन के इ़लावा ह़ुक्मी शहीदों की और भी बहुत ज़्यादा क़िस्में हैं जिन के बारे में दूसरी मशहुर अह़ादीसे शरीफ़ा में ज़िक्र किया गया है।चुनांचे कुछ ओ़लमाए किराम मसलन सुयूती रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह ने उन्हें एक जगह जमा किया है।इस ह़दीस शरीफ़ में जो शोहदाए ह़ुक्मी ज़िक्र किए गए हैं उन के अलावा दूसरे ह़ुक्मी शोहदा यह हैं...
निमोनिया की बीमारि में मरने वाला,जल कर मर जाने वाला,ह़ालते ह़मल में मर जाने वाली औ़रत या बाकिरा मर जाने वाली औ़रत,वह औ़रत जो ह़ामिला होने से बच्चे के पैदा होने तक या बच्चे के दूध छुटाने तक मर जाए।
सिल यानी दिक़ यानी टी.बी. के मर्ज़ में मरने वाला,ह़ालते सफ़र में मरने वाला,सफ़रे जिहाद में सवारी से गिर कर मर जाने वाला,इस्लामी मुम्लिकत(ह़ुकूमत) की सरह़दों की ह़िफ़ाज़त के दौरान मर जाने वाला,गढ़े यानी खड्डे में गिर कर मरजाने वाला,दरिंदों यानी शेर वग़ैरा का लुक़्मा बन जाने वाला,अपने माल अपने अहलो ए़याल अपने दीन अपने ख़ून और ह़क़ की ख़ातिर क़त्ल किया जाने वाला,दौराने जेहाद अपनी मौत मर जाने वाला,और वह शख़्स जिसे शहादत की पुरख़ुलूस तमन्ना और लगन हो मगर शहादत का मौक़ा उसे नस़ीब ना हो और उस का वक़्त पूरा हो जाए और शहादत की तमन्ना अपने दिल में लिए इस दुनिया से रुख़सत हो जाए।
ह़ज़रते अ़ली रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहु से मरवी है कि जिस शख़्स को ह़ाकिमे वक़्त ज़ुल्मो तशद्दुद के तौर पर क़ैद खाने में डाल दे और वह शख़्स वहीं मर जाए तो वह शख़्स शहीद है।जो शख़्स मज़लूमाना तौर पर ज़दो कूब किया जाए यानी मारा पीटा जाए और उस के नतीजे में बाद में मर जाए तो वह शहीद है।
और जो शख़्स तौह़ीद की गवाही देते हुए दुनिया से गुज़र जाए तो वह शहीद है।
ह़ज़रते अनस रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहु से बत़रीक़े मरफ़ूअ़ मरवी है कि तप यानी बुख़ार(में मरने वाला) शहीद है।
ह़ज़रते अबूउ़बैदा इब्नुल जराह़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहु से मरवी है कि मैं ने अ़र्ज़ किया कि या रसूलल्लाह!स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम शोहदा में अल्लाह तआ़ला के नज़दीक सबसे ज़्यादा फ़ज़ीलत वाला शहीद कौन है, आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया कि वह शख़्स जो ज़ालिम ह़ाकिम के सामने खड़े होकर उसे अच्छा और नेक काम करने का ह़ुक्म दे और बुरे काम से रोके और वह ह़ाकिम उस शख़्स को मार डाले।
ह़ज़रते अबू मूसा रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहु से मरवी है कि जिस शख़्स को घोड़ा या उंट कुचल और रौंद डाले और वह मर जाए,या ज़हरीले जानवर के काटने से मर जाए तो शहीद है।
ह़ज़रते इब्ने अ़ब्बास रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहुम से मरवी है कि जिस शख़्स को किसी से इ़श्क़ हो गया और ना सिर्फ यह कि वह अपने इ़श्क़ में पाकबाज़ व मुत्तक़ी रहा बल्कि उसने अपने इ़श्क़ को छुपाया भी और उसी ह़ाल में उस का इंतक़ाल हो गया तो वह शहीद है।
सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम का यह इरशादे गिरामी मनक़ूल है कि जो शख़्स कश्ती में बैठा हुआ दर्दे सर और क़य(उल्टी) में मुब्तिला हो और उस का इंतक़ाल हो जाए तो उसे शहीद का अज्र मिलता है।
Dargah Hazrat Ashshaikh AbdulQadir Jilani Radhiyallaho Tala Anho Baghdad Sharif
ह़ज़रते इब्ने मसऊ़द रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहु से मरफ़ूअ़न रिवायत है कि"अल्लाह तआ़ला ने औ़रत के लिए ग़ैरत व ख़ुद्दारी लाज़िम रखी है और मरदों के लिए जिहाद ज़रूरी क़रार दिया है, लिहाज़ा औ़रतों में से जिस औ़रत ने अपनी सौकन की मौजूदगी में स़ब्र व ज़ब्त़ का दामन पकड़े रखा तो उसे शहीद का अज्र मिलेगा।
ह़ज़रते आ़इशा स़िद्दीक़ा रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहा बत़रीक़े मरफ़ूअ़ रिवायत करती हैं कि जो शख़्स रोज़ाना पच्चीस मरतबा यह दुआ़ "अल्लाहुम्म बारिक ली फ़िल-मौते व फ़ी-मा बअ़दल-मौत।" पढ़े और बिस्तर पर उस का इंतक़ाल हो जाए, तो अल्लाह तआ़ला उसे शहीद का सवाब इ़नायत फ़रमाता है।
ह़ज़रते इब्ने उ़मर रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहु मरफ़ूअ़न रिवायत करते हैं कि "जो शख़्स दोह़ा यानी इशराक़ और चाश्त की नमाज़ पढ़े,और महीने में तीन दिन रोज़े रखे और वित्र की नमाज़ ना ह़ालते सफ़र में छोड़े ना ह़ालते क़याम में,तो उस के लिए शहीद का अज्र लिखा जाता है।
इसी त़रह़ उम्मत में अ़वामी तौर पर ए़तेक़ादी व अ़मली गुमराही के वक़्त सुन्नत पर मज़बूती से क़ायम रहने वाला और त़लबे इ़ल्म में मरने वाला शहीद है।"
"त़लबे इ़ल्म में मरने वाले" से वह शख़्स मुराद वह शख़्स है जो इ़ल्मे दीन सीखने या सीखाने में मस़रूफ़ हो या दीनी किताब लिखने वग़ैरह में मशग़ूल हो,और या सिर्फ किसी दीनी मजलिस में ह़ाज़िर हो।
जिस शख़्स ने अपनी ज़िंदगी ऐसे गुज़ार दी हो कि लोगों की मेहमाननवाजी और ख़ात़िर व तवाज़ोअ़ उस का त़रीक़ा रहा हो तो वह शहीद का सवाब पाता है।
Dargah Huzur Garib Nawaz Radhiyallaho Tala Anho
ऐसा शख़्स जो मैदाने जेहाद में ज़ख़्मी हो कर फ़ौरन न मरे बल्कि कम से कम इतनी देर तक ज़िंदा रहे कि किसी दुनिया की चीज़ से फ़ायदा उठा सके फ़िर उस का इंतक़ाल(जेहाद के ज़ख़्मों से) हो तो भी वह शख़्स शहीद है।
जो शख़्स मुसलमानों तक ग़ल्ला(अनाज) पहुंचाए और जो शख़्स अपने अहलो अ़याल और अपने ग़ुलाम व लौंडी के लिए(ह़लाल) कमाए वह शहीद है।
ऐसे ही अगर कोई शख़्स जुनबी हो यानी उस पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो और वह मैदाने जंग में मारा जाए तो वह शख़्स शहीद है।
शरीक़ यानी जिस के गले में पानी फंस जाए और वह दम घुंटने से मर जाए तो वह शहीद है।
ह़दीस शरीफ़ में आया है की जो मुसलमान अपने मर्ज़(बीमारी) में ह़ज़रते यूनुस अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम की यह दुआ़ "ला इला-ह इल्ला अं-त सुब-ह़ा-न-क इंन्नी कुंन्तो मिनज़्ज़ालिमीन" चालीस मरतबा पढ़े और उसी बीमारी में इंतक़ाल कर जाए तो उसे शहीद का सवाब दिया जाता है।और अगर उस मर्ज़ से उसे छुटकारा मिल जाए तो इस ह़ाल में सेह़त मंद होता है कि उस की मग़फ़िरत हो चुकी होती है।
यह भी ह़दीस शरीफ़ में वारिद है कि सच्चा और अमानतदार ताजिर business man क़यामत के रोज़ शहीदों के साथ होगा।
और जो शख़्स जुम्आ़ के शब यानी जुम्आ़ की रात में मरता है वह शहीद है।
ह़दीस शरीफ़ में यह भी मनक़ूल है कि बिला उजरत सिर्फ अल्लाह तआ़ला की रज़ा की ख़ात़िर अज़ान देने वाला मोअज़्ज़िन उस शहीद के मानिंद है जो अपने ख़ून में लतपत तड़पता हो,नीज़ वह मोअज़्ज़िन जब मरता है तो उस की क़ब्र में कीड़े नहीं पड़ते।
मनक़ूल है कि सरकारे दो आ़लम सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया"जो शख़्स मुझ पर एक मरतबा दरूद शरीफ़ भेजता है अल्लाह तआ़ला उसपर दस मरतबा रह़मत नाज़िल फ़रमाता है।जो शख़्स मुझ पर दस मरतबा दरूद शरीफ़ भेजता है अल्लाह तआ़ला उसपर सौ मरतबा अपनी रह़मत नाज़िल फ़रमाता है।
और जो शख़्स मुझ पर सौ मरतबा दरूद शरीफ़ भेजता है तो अल्लाह तआ़ला उस की दोनों आंखों के दरमियान बरात(छुटकारा) यानी निफ़ाक़ और आग से निजात लिख देता है और अल्लाह तआ़ला उसे क़ियामत के दिन शहिदों के साथ रखेगा।
मनक़ूल है कि जो शख़्स सुबह के वक़्त तीन मरतबा अऊ़ज़ोबिल्लाहिस्समीइ़लअ़लीमे-मिनश्शैतानिर्रजीम और सूरह ह़श्र शरीफ़ की आख़िरी तीन आयतें पढ़ता है तो अल्लाह तआ़ला उस के साथ सत्तर हज़ार फ़रिश्ते मुक़र्रर करता है जो उसके लिए शाम तक बख़शिश की दुआ़ करते हैं।और वह शख़्स अगर उस दिन मर जाता है तो उस की मौत शहीद की मौत होती है।और जो शख़्स यह शाम को पढ़ता है वह भी इसी अज्र का मुस्तह़िक़ होता है।
मनक़ूल है कि सरकारे दो आ़लम सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने एक शख़्स को वस़ीयत की कि जब तुम रात में सोने के लिए अपने बिस्तर पर जाओ तो सूरह ह़श्र शरीफ़ की आख़िरी आयतें पढ़ लो और फ़रमाया "अगर तुम(इसी रात में) मर गए तो शहीद की मौत पाओगे।"
Yaa Khwaja Radhiyallaho Tala Anho Almadad
मनक़ूल है कि जो शख़्स मिरगी के मर्ज़ में मर जाता है वह शहीद होता है।जो शख़्स ह़ज और उ़मरा के दरमियान मर जाता है शहीद होता है।जो शख़्स बावुज़ू मरता है शहीद होता है।इसी त़रह़ रमज़ानुल मुबारक में, बैतुल मुक़द्दस में,मक्का शरीफ़ या मदीना मुनव्वरा में मरने वाला शख़्स शहीद होता है।
दुबलाहट की बिमारी में मरने वाला शख़्स शहीद होता है।
जो शख़्स किसी आफ़त व बला में मुब्तिला हो और वह उसी ह़ालत में ज़रर व बला पर स़बर व रज़ा का दामन पकड़े हुए मर जाए तो शहीद है।
जो शख़्स सुबह व शाम "मक़ालीदुस्समावाते वल अर्द...आख़िर तक" जिस के पढ़ने की फ़ज़ीलत का तज़किरा एक ह़दीस शरीफ़ में किया गया है,पढ़े तो वह शहीद है।
मनक़ूल है कि जो शख़्स नव्वे बरस की उ़म्र में या आसेब ज़दा हो कर मरे,या इस ह़ाल में मरे कि उस के मां बाप उस से ख़ुश हों,और या नेक बख़्त बीवी इस ह़ाल में मरे कि उस का शौहर उस से राज़ी ख़ुश हो तो वह शहीद है।निज़ वह मुसलमान भी शहीद है जो किसी ज़ई़फ़ यानी कमज़ोर मुसलमान के साथ कल-म-ए ख़ैर या उस की किसी त़रह़ की मदद करके भलाई का मामला करे।
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