दसवीं पोस्ट--शरीअ़त पहले है या त़रीक़त? इस का स़ह़ीह जवाब (फ़ैसला ता क़ियामत--10)

बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम
नह़मदुहू व नुस़ल्ली व नुसल्लिमु अ़ला रसूलिहिल करीम।
(इस बयान को पढ़ने से पहले अपने ज़ेहन को सारे ख़यालात से खाली कर लें।
यह बयान लम्बा है लेकिन इसे एक ही पोस्ट में लिखना ज़रूरी था।शुरू में अगर ऐसा लगे कि यह बयान समझ में नहीं आ रहा है तब भी इसे पढ़ना ना छोड़ें क्योंकि आगे इसे अच्छे से समझा कर लिखा गया है।)
क़ियामत तक के हर मुसलमान को जो चार बातें सीखनीं फ़र्ज़ हैं उन में से दो बातों यानी "ईमान और कुफ़्र की तअ़रीफ़ यानी व्याख्या" और "इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमियत" के बयानात हम पिछली पोस्टों में पढ़ चुके हैं।अब तीसरी बात "शरीअ़त पहले है या त़रीक़त इस का स़ह़ीह़ जवाब"इस का बयान...
हर मुसलमान यह कहता है कि मैं "शरीअ़त" पर ईमान रखता हूं, लेकिन अगर वह "शरीअ़त" का मानी भी ना जानता हो तो कितने बड़े अफ़सोस की बात है।दीन की बातों को सिर्फ इसलिए ना पढ़ना कि मुझे समझ में नहीं आती यह बहुत बुरी बात है।दीन के इ़ल्म को अच्छे से समझ कर पढ़ने का ह़ुक्म है।अगर "शरीअ़त" और "त़रीक़त" का मानी समझना है तो इस बयान को ध्यान से, समझ कर ज़रूर पढ़ें।
गुमराही से बचने के लिए यह एक ज़रूरी बह़स है और अगर किसी मौज़ूअ़(Subject) पर शराफ़त के साथ बह़स की जाए तो उस मौज़ूअ़ का अच्छा इ़ल्म ह़ास़िल हो सकता है।किसी भी मौज़ूअ़ या बात पर जब भी बह़स की जाए तो सबसे पहले ताअ़रीफ़ (यानी Definition) को ज़रूर समझ लेना चाहिए ताकि यह बात पता रहे कि किस बारे में बात की जा रही है।तो अगर हम यह बात कर रहे हैं कि "शरीअ़त पहले है या त़रीक़त" तो हमें शरीअ़त और त़रीक़त की तअ़रीफ़ मालूम होनी चाहिये।
ह़कीमुल उम्मत ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह अपने रिसाले असरारुल अह़काम में शरीअ़त और त़रीक़त की तारीफ़(Definition) तफ़्स़ील से समझाते हुए बताते हैं कि "शरीअ़त" यह "शरअ़" से बना है जिसका मतलब होता है चौड़ा और सीधा रास्ता।और त़रीक़त तरीक़ से बना है जिसका मतलब होता है तंग और पेचीदा रास्ता।"शरीअ़त"इस्लाम का वह रास्ता है जिस पर हर शख़्स आंख बंद कर के चल सके।और त़रीक़त असरार के वह पेचीदा और तंग गली कूचे हैं जो वाक़िफ़ के सिवा दुसरा ना तै कर सके।शरीअ़त में आसानी है मगर कामयाबी देर में।त़रीक़त मुश्किल है मगर बहुत जल्द मक़स़ूद तक पहुंचाती है।गलीयों के ज़रीए जल्द पहुंचना होता है।
आगे ह़कीमुल उम्मत ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह फ़रमाते हैं...
सरकार मोह़ंम्मद मुस़्त़फ़ा स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के जिस्मे पाक के ह़ालात का नाम शरीअ़त है।और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के क़ल्बे मुबारक(यानी दिल) के अह़वाल का नाम त़रीक़त और सिर्रे पाक स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के अह़वाल का नाम ह़की़क़त है।रूह़े पाक स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ह़ालात का नाम मअ़रिफत(मअ़रिफते ईलाही) है।मतलब यह कि ज़ाते पाके मुस़्त़फ़ा स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम इन चारों का मरकज़ है।सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम का जिस्मे पाक शरीअ़त का मरकज़ और क़ल्बे मुबारक त़रीक़त का मरकज़
आगे ह़कीमुल उम्मत ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह शरीअ़त का त़रीक़त के साथ ताल्लुक(तअ़ल्लुक़) बताते हुए फ़रमाते हैं...
शरीअ़त पोस्त(फल के उपर का छिलका) है त़रीक़त मग़ज़(फल के अंदर का वह ह़िस़्स़ा जो खाया जाता है और जिसे आ़म भाषा में फल का गोदा कहा जाता है)।पोस्त यानी छिलका बग़ैर मग़ज़ यानी बग़ैर गोदे के बेक़िमत है और गोदा ,छिलके के बग़ैर मह़फूज़ नहीं।बादाम के छिलके जब उसके गोदे से जुदा हो जाएं तो उन की क़ीमत कुछ नहीं।इसी तरह बादाम का गोदा, छिलके से जुदा हो कर हर जानवर की ग़िज़ा(खोराक)है।शैतान की इ़बादत बग़ैर गोदे के छिलके की त़रह़ थी,इस लिए कोई क़ीमत ना हुई।जाहिल स़ूफ़ी की रियाज़तें बग़ैर छिलके वाले गोदे की तरह हैं इस लिए हमेशा ख़तरे में हैं।त़रीक़त गोया ह़की़क़त है और शरीअ़त गोया मजाज़(मजाज़ का मतलब होता है "वह जिस की अस़लीयत ना हो"और एक मानी होता है "ख़िलाफ़े ह़की़क़त" यानी ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह यहां साफ तौर पर बता रहे हैं कि शरीअ़त का अस़ल मक़स़द त़रीक़त है।और त़रीक़त के बग़ैर शरीअ़त बिल्कुल बेकार है, और त़रीक़त के बग़ैर इ़बादतें शैतान की इ़बादतों की तरह हैं)। जो कहे अब दुनिया में कोई वली नहीं वह झूठा है।कैसे मुमकिन है दुनिया में मजाज़(ख़िलाफ़े ह़की़क़त) रहे और ह़क़ीक़त ना रहे।शरीअ़त दरख़्त यानी पेड़ है और त़रीक़त उसका फल फूल।शरीअ़त रास्ता है त़रीक़त मनज़िले मक़स़ूद।शरीअ़त मह़फूज़ क़िला है त़रीक़त उस क़िले का मह़फूज़ ख़ज़ाना।शरीअ़त ग़ाज़ी का झंडा है और त़रीक़त सरा परदा(सरा परदा का मानी होता है बादशाह के मह़ल या बादशाह के दरबार के आगे का परदा।मतलब यह कि त़रीक़त सबसे बड़े बादशाह अल्लाह तआ़ला के साथ जो बंदे के दिल में तअ़ल्लुक़ होता है उसका नाम है और यह छुपाने की बात है और शरीअ़त ज़ाहिर करने की चीज़ है यहां ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह यह बता रहे हैं कि ईमान वाला शरीअ़त के ज़रिए अपने ईमान व अ़किदे को ज़ाहिर करता है लेकिन अल्लाह तआ़ला से दिल में जो राज़ो नियाज़ की बातें करता है उसे छुपा कर रखता है।यह त़रीक़त है।यही मक़स़ूद है।)
(ह़कीमुल उम्मत ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह के रिसाले असरारुल अह़काम को ज़रूर देखें)
दरहक़ीक़त "शरीअ़त" इस लफ़्ज़ की बह़स बहुत बड़ी है।इंसान को इस लम्बी बह़स को समझना बहुत ज़रूरी भी है।
ह़कीमुल उम्मत ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह ने अपने रिसाले असरारुल अह़काम में शरीअ़त और त़रीक़त के बारे में जो बातें लिखीं हैं उन्हें समझने के लिए पहले शरीअ़त के बारे में यह जान लेना चाहिए कि  "शरीअ़त"के कम अज़ कम दो मानी हैं। "शरीअ़त" का जो पहला मानी होता है उस ह़िसाब से "शरीअ़त" को "शरीअ़ते कामिला" कहते हैं।और शरीअ़त का जो दूसरा मानी होता है उसे सिर्फ "शरीअ़त" कहते हैं।शरीअ़त, त़रीक़त, माअ़रिफ़त और ह़की़क़त यह सब शरीअ़ते कामिला के ही ह़िस़्स़े हैं।सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने हमें जो सिखाया है वह "शरीअ़ते कामिला" है।ह़कीमुल उम्मत ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह ने जो यह बताया है कि  "शरीअ़त" यह "शरअ़" से बना है जिसका मतलब होता है चौड़ा और सीधा रास्ता।"शरीअ़त"इस्लाम का वह रास्ता है जिस पर हर शख़्स आंख बंद कर के चल सके। तो यह बात शरीअ़ते कामिला के बारे में बताई है।क्योंकि हर ख़ास व आ़म को इस रास्ते की ज़रूरत होती है।इस पर चलना ही रब तबारक व तआ़ला की बंदगी है।लेकिन शरीअ़ते कामिला शरीअ़त, त़रीक़त, माअ़रिफ़त और ह़की़क़त से बनी है इस लिए शरीअ़त, त़रीक़त, माअ़रिफ़त और ह़की़क़त को अच्छे से समझना भी ज़रूरी है।अब चूंकि हर शख़्स को शरीअ़ते कामिला पर चलना ज़रूरी है तो हर शख़्स को यह ख़ूद सोचना चाहिए कि उसे शरीअ़त, त़रीक़त, माअ़रिफ़त और ह़की़क़त को समझना चाहिये या नहीं।इसी लिए ह़कीमुल उम्मत ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह ने चारों की बुनियाद का राज़ सब को बताया है कि सरकार मोह़ंम्मद मुस़्त़फ़ा स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के जिस्मे पाक के ह़ालात का नाम शरीअ़त है और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के जिस्मे पाक के ह़ालात सब लोगों की शरीअ़त के लिए मरकज़।और क़ल्बे पाक स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के अह़वाल का नाम त़रीक़त और सब लोगों की त़रीक़त के लिए मरकज़ और सिर्रे पाक स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के अह़वाल का नाम ह़की़क़त है और आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम का सिर्रे पाक स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम सब लोगों के लिए ह़की़क़त तक पहंचने के लिए मरकज़।और रूह़े पाक स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के अह़वाल का नाम "मअ़रिफत(यानी मअ़रिफते ईलाही)" है और बाक़ी दूसरी मख़लूक़ात के लिए मअ़रिफते इलाही सीखने का मरकज़, मअ़रिफते ईलाही ह़ास़िल करने का मरकज़।
तो शरीअ़ते कामिला के चारों ह़िस़्स़े शरीअ़त, त़रीक़त, माअ़रिफ़त और ह़की़क़त में से पहले ह़िस़्स़े "शरीअ़त" को हमें "ज़ाहिरी शरीअ़त" कहना पड़ेगा।क्योंकि वह ज़ाहिर में भी नज़र आ जाती है, जब कि त़रीक़त, माअ़रिफ़त और ह़की़क़त को हम ज़ाहिरी आंखों से नहीं देख सकते इस लिए इन्हें "बात़िनी शरीअ़त" कहना पड़ेगा।
यहां पर एक ख़ास बात याद रखना ज़रूरी है की सरकार स़ल्लल्लाहोतआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम अल्लाह तआ़ला की सारी मख़लूक़ में सब से बढ़ कर कामिल अकमल हैं इस लिए आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के ज़ाहिरी शरीअ़त, त़रीक़त, मअ़रिफत और ह़की़क़त के ह़ालात भी बाक़ी सारे नबीयों वलीयों से ज़्यादा कामिल हैं।
तो "शरीअ़ते कामिला" के बारे में हम यह कह सकते हैं कि जिस तरह जिस्म के लिए जान ज़रूरी है वैसे ही शरीअ़ते कामिला के लिए त़रीक़त, माअ़रिफ़त और ह़की़क़त यह ज़रूरी हैं।जिस तरह जान के बग़ैर जिस्म बेकार है वैसे ही त़रीक़त, माअ़रिफ़त और ह़की़क़त के बग़ैर शरीअ़त बेकार है।यहां पर एक ख़ास ह़दीस शरीफ जो कि ह़दीसे मोतवातिर भी है, नक़ल कर देना ज़रूरी है।इंशाअल्लाह उस कि बरकत से त़रीक़त, माअ़रिफ़त और ह़की़क़त कि अहमियत अच्छे से समझ में आजाएगी।
स़ह़ीह़ बुख़ारी शरीफ में फज़ाईले क़ुरआन पाक के बयान में ह़ज़रते अ़ली रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़न्हो रिवायत करते हैं कि मैं ने रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही वसल्लम को फरमाते हुए सुना है कि आखिर ज़माने मे नौउ़मर (कम उ़मर) लोग हलकी यानी कम अक़लों के पैदा होंगे, जो रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही वसल्लम का क़ौल बयान करेंगे और(इसके बावजूद) वह दीन से ऐसे निकले हुए होंगे जैसे तीर शिकार से निकल जाता है, उनका ईमान उनके गलों से निचे(दिल में) ना उतरेगा,(मैदाने जंग में) जहां वह तुम्हें मिलें उन्हे मार डालो, क्योंकी मारने वालों का उनके मारने का क़ियामत के दिन सवाब मिलेगा।
इस ह़दीस शरीफ में साफ बताया गया है कि वह लोग ज़ाहिर में अच्छे मुसलमान नज़र आएंगे, लेकिन उनका ईमान उनके गले से नीचे मतलब दिल में नहीं उतरेगा।और दिल के ह़ालात यह त़रीक़त के ह़ालात कहलाते हैं। दिल का ईमान यही त़रीक़त का ईमान कहलाता है।और यही शरीअ़ते कामिला का मक़स़द है।यानी इस ह़दीस शरीफ में त़रीक़त कि अहमीयत अच्छे से बता दी गई है कि त़रीक़त के बग़ैर आदमी मुसलमान भी नहीं हो सकता।इस मौज़ूअ़ पर और भी कई अह़ादीस आइ हैं।चुनांचे ह़कीमुल उम्मत ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह ने अह़ादीस की रोशनी में ही शरीअ़ते कामिला का त़रीक़त के साथ ताल्लुक(तअ़ल्लुक़) बताते हुए कई बातें बयान फ़रमाइ हैं जो उपर गुज़रीं हैं जिनमें कुछ यह हैं...
शरीअ़त पोस्त(फल के उपर छिलके वाला भाग) है त़रीक़त मग़ज़(फल के अंदर का वह ह़िस़्स़ा जो खाया जाता है)।पोस्त बग़ैर मग़ज़ बेक़िमत है और मग़ज़ पोस्त के बग़ैर मह़फूज़ नहीं।यानी त़रीक़त के बग़ैर शरीअ़त की कोई अहमियत नहीं।बग़ैर त़रीक़त के शरीअ़त सिर्फ छिलके कि तरह बेकार है।शरीअ़ते कामिला का अस़ल मक़स़द त़रीक़त है।लेकिन जिस तरह छिलका फल के अंदर के मग़ज़ की ह़िफा़ज़त करता है, वैसे ही ज़ाहिरी शरीअ़त त़रीक़त की ह़िफा़ज़त करती है।आगे ह़ज़रत फरमाते हैं "त़रीक़त गोया ह़की़क़त है और शरीअ़त गोया मजाज़" मजाज़ का मतलब है ख़िलाफ़े ह़की़क़त।यहां ह़ज़रत ने त़रीक़त को ह़की़क़त यानी सच्चाई और अस़ली चीज़ फ़रमाया है और शरीअ़त(यानी ज़ाहिरी शरीअ़त) को त़रीक़त के मुक़ाबले में "ख़िलाफ़े ह़की़क़त"(यानी एक त़रह़ से झूट) तक बताया है।आगे ह़ज़रत फ़रमाते हैं "शरीअ़त दरख्त यानी पेड़ है और त़रीक़त उसका फल फूल"। यानी जिस तरह पेड़ लगाने से उस का मक़स़द फल होता है इसी तरह ज़ाहिरी शरीअ़त का मक़स़द त़रीक़त है।ज़ाहिरी शरीअ़त त़रीक़त से मिले बग़ैर शरीअ़ते कामिला नहीं बन सकती।चुनांचे ह़कीमुल उम्मत ह़ुज़ूर मुफ्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह शरीअ़त का त़रीक़त के साथ ताल्लुक(तअ़ल्लुक़) बताते हुए आख़िर में फ़ैसला फ़रमाते हैं "शरीअ़त रास्ता है त़रीक़त मनज़िले मक़स़ूद।शरीअ़त मह़फूज़ क़िला है त़रीक़त उस क़िले का मह़फूज़ ख़ज़ाना।"
यहां पर इस बात को अच्छे से समझ लें कि शरीअ़ते कामिला का मक़स़द त़रीक़त इस लिए है क्योंकि त़रीक़त दिल के ईमानी हालात का नाम है और ईमान मअ़रिफते ईलाही यानी अल्लाह तआ़ला को स़ह़ीह़ तरह़ से पहचानने का नाम है।
तो इस सवाल का जवाब कि"शरीअ़त पहले है या त़रीक़त" यह है कि इंसान जब सिर्फ रूह़ था तब भी उस के पास फ़ित़री तौर पर ईमान था।जब मां के पेट में आया तब भी उसके पास ईमान था।जब पैदा हुआ तो भी उसके पास ईमान था और जब दुनिया में शरीअ़ते कामिला के मुत़ाबिक़ इंसान ईमान लाता है तो शरीअ़ते कामिला भी यही ह़ुक्म देती है कि दिल की गहराई से ईमान लाओ वरना ज़ाहिरी तौर पर ज़बान से ईमान का इक़रार करना फ़ुज़ूल है।और दिल से ईमान लाने को और दिल के ईमानी ह़ालात को ही "त़रीक़त" बोलते हैं।तो इससे मालूम हुआ कि त़रीक़त इंसान के साथ उस वक्त भी थी जब वह सिर्फ रूह़ था, और त़रीक़त इंसान के साथ उस वक्त भी थी जब वह मां के पेट में आया,और त़रीक़त इंसान के साथ उस वक्त भी थी जब वह पैदा हुआ, और त़रीक़त उस के साथ उस वक्त भी ज़रूरी है जब वह शरीअ़ते कामिला को मानता है।और मौत के वक़्त भी दिल में ईमान यानी त़रीक़त का होना ज़रूरी है।और मौत के बाद क़ब्र में सवालों के जवाब देने के लिए दिल में ईमान यानी त़रीक़त का होना ज़रूरी है।पहले यह बात जान लें कि यहां इस सवाल में शरीअ़त से मतलब "शरीअ़ते कामिला" है।अब तक यह बात तो ह़ल हो गई कि शरीअ़ते कामिला का बग़ैर त़रीक़त के तस़व्वुर यानी ख़याल भी नहीं किया जा सकता।क्योंकि त़रीक़त दिल के ह़ाल का नाम है और अगर दिल में ईमान ही न हो तो इंसान काफ़िर हो जाएगा और सारी बात ही ख़त्म हो जाएगी।यानी त़रीक़त हर वक़्त शरीअ़ते कामिला के साथ ही है।
अब यहां एक बात और जान लेना ज़रूरी है कि इंसान और जिन्नात के दिल का अपनी रूह़ से सीधे सीधे यानी Direct तअ़ल्लुक़ होता है।पैदा होने के पहले इंसान और जिन्नात सिर्फ रूह़ थे और अल्लाह तआ़ला को जानते मानते थे।और जब दुनिया में अल्लाह तआ़ला ने उन्हें जिस्म अ़त़ा किया जिसमें दिल भी था तो उस दिल में रूह़ से यह सीधा सीधा तअ़ल्लुक़ भी अ़त़ा फ़रमाया।तो दिल का त़रीक़त वाला ईमान यह रूह़ से मिला है।इसलिए त़रीक़त को "ऱूह़ानियत" भी कहते हैं।
लेकिन एक बहुत ही ख़ास बात है जिसे जानने और समझने के बाद त़रीक़त की अहमियत और अच्छी तरह से खुल कर सामने आ जाएगी।
हम अहलेसुन्नत वल जमाअ़त के अ़क़ाए़द के मुताबिक़ हमारे सरकारे दो आ़लम ह़ुज़ूर मोह़ंम्मदुर्रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम का नूरे मुबारक सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम हर जगह ह़ाज़िर व नाज़िर है यहां तक कि अल्लाह तआ़ला की हर मख़लूक़(पैदा की गई चीज़)के अंदर भी मौजूद है, फिर वह मख़लूक़ चाहे जिंदा रूह़ वाली यानी फरिश्ते, इंसान, जिन्नात या जानवर वग़ैरह हों या फिर बग़ैर रूह़ वाली जैसे पत्थर, पानी, ज़मीन, आसमान वग़ैरह, यह नूरे पाक सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ही सारी मख़लूक़ को अल्लाह तआ़ला की बंदगी करना सिखा रहा है।चुंकि सारी मख़लूक़ात को सरकार सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम की बड़ाई दिखाने के लिए ही पैदा किया गया है इस लिए अल्लाह तआ़ला की तरफ़ से ऐसा निज़ाम(सिस्टम) रखा गया है कि अल्लाह तआ़ला की सारी मख़लूक़ भी अल्लाह तआ़ला की बंदगी का त़रीक़ा सीखने के लिए सरकार सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम की मोह़ताज रखी गई है।चुनांचे सरकार सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ख़ूद इरशाद फ़रमाते हैं कि मैं उस वक्त भी नबी था जब ह़ज़रते आदम अ़लैहिस़्स़लातो वस्सलाम पानी और मिट्टी के दरमियान थे।तो जब इंसान और जिन्नात दुनिया में पैदा भी नहीं हुए थे, सिर्फ उन की रूह़ थी या बाद में जब वह मां के पेट में आए या फिर जब वह पैदा हो कर छोटे थे तब भी उन पर ईमान रखना ज़रूरी था।तो यह ईमान की तालीम सरकार सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम का नूरे पाक ही दे रहा था।रही शरीअ़ते कामिला की तालीम की बात,तो यह  शरीअ़ते कामिला की तालीम बाद में बड़े हो कर जब कुछ दुनिया समझ में आने लगी तब आई।सब अच्छे से जानते हैं कि बिल्कुल छोटे बच्चे पर ज़ाहिरी शरीअ़त के अह़काम लागू नहीं होते।यहां पर अहले सुन्नत वल जमाअ़त का यह अ़क़ीदा भी अच्छे से जान लें कि अल्लाह तआ़ला ने जो ज़ाहिर में अंम्बियाए कराम अ़लैहिमुस़्स़लातो वस्सलाम को भेज कर हम लोगों को जो दीन की तालीम दी तो यह अल्लाह तआ़ला की ख़ास रह़मत है, अल्लाह तआ़ला पर यह कोई ज़रूरी नहीं था कि वह अंम्बियाए कराम अ़लैहिमुस़्स़लातो वस्सलाम को भेज कर हम लोगों को  अपना दीन सिखाता, शरीअ़ते कामिला की तालीम देता।आखिर सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम का नूरे पाक स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम तो क़ल्ब और रूह़ और सिर्र के अंदर रह कर सबको ईमान व इ़रफ़ान की तालीम तो दे ही रहा है।हजा़रों साल से जब इंसान और जिन्नात के पैदा होने के पहले जब सिर्फ उनकी रूह़ें थीं तब भी सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम का नूरे पाक स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम सब की रूह़ों के अंदर से ईमान व इ़रफ़ान की तालीम दे ही रहा था।और यह तालीम ज़ाहिर है, शरीअ़त वाली नहीं बल्कि तरीक़त वाली होती है।तो बंदा सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के नूरे पाक स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को जानता पहचानता है और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम की तालीम के ज़रीए बंदा अपने ईमान की ह़िफा़ज़त करता है।चुनांचे जब इंसान का कोई भी बच्चा पैदा होता है तो वह ईमान पर ही पैदा होता है।
चुनान्चे बुखारी शरीफ में तफासीर के बयान में ह़ज़रत अबूहुरैरह रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से मरवी है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि हर बच्चा इस्लामी फ़ित़रत पर पैदा होता है उसके बाद उसके मां बाप उसे यहूदी या ई़साई या मजूसी बना देते हैं।

[यहां पर इतना बयान होने के बाद अब यह बात बता देना बहुत ज़रूरी है कि हम लोग जो यह कहते हैं "शरीअ़त पहले है और त़रीक़त बाद में" उस की वजह यह है कि जब आम आदमी पैदा होने के बाद अपने पैदाइशी ईमान को भूल कर काफ़िर हो जाता है या उस पैदाइशी दीनी तालीम को भूल जाता है तो उसे अंम्बियाए किराम अ़लैहिमुस़्स़लातो वस्सलाम की शरीअ़त वाली तालीमात को सीख कर उन पर अ़मल कर के अपने पैदाइशी ईमान या अपने पैदाइशी दीनी तालीम यानी "त़रीक़त" को दोबारा ह़ास़िल कर ले।इसी लिए ह़ुज़ूर मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान स़ाह़ब नई़मी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह ने फ़रमाया है "शरीअ़त दरख़्त यानी पेड़ है और त़रीक़त उसका फल फूल।शरीअ़त रास्ता है त़रीक़त मनज़िले मक़स़ूद।"बग़ैर इस बात को समझाए हम जो कहते रहते हैं कि शरीअ़त पहले है त़रीक़त बाद में इस की वजह से आदमी त़रीक़त यानी अस़ल ईमान से ही दूर हो जाता है और सिर्फ शरीअ़त, शरीअ़त कहते हुए गुमराह हो कर वहाबी बदमज़हब बन जाता है।और हम सब अच्छे से जानते हैं कि वहाबी "त़रीक़त" को नहीं मानते।तो यह तालीमात अगर हर सुन्नी को ह़ास़िल रहे तो उम्मीद है कि वह गुमराह होने से इंशाअल्लाहुलअ़ज़ीज़ बचा रहेगा।इस लिए इस की लिंक ज़रूर शेयर करें।]
तो यह पैदाइशी तौर पर बंदे के पास जो ईमान होता है वह त़रीक़त वाला सच्चा ईमान होता है।लेकिन बंदा अपने मां बाप या दोसरे काफिरों की तालीम हासिल कर के(दरह़क़ीक़त दुनिया की मोह़ब्बत में पड़ कर) उस सच्चे ईमान को खो देता है।फिर अगर दुनिया की मोह़ब्बत उस के दिल में ज़्यादा गहराई में न हो तो अंम्बियाए किराम अ़लैहिमुस़्स़लातो वस्सलाम के ज़रिए़ शरीअ़ते कामिला की तालीमात से बंदा दोबारा ईमान ह़ास़िल कर लेता है।लेकिन उसे शरीअ़ते कामिला के क़ानून के मुताबिक़ त़रीक़त वाला ईमान जो कि पैदा होते वक़्त उसके पास था, ह़ास़िल करना ज़रूरी होता है।सिर्फ ज़ाहिरी शरीअ़त के ह़िसाब से कल्मा पढ़ना इ़बादत करना काम ना आएगा।चुनान्चे मरते ही क़ब्र में ईमान के बारे में, अल्लाह तआ़ला की पहचान के बारे में और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के पहचान के बारे में सवाल होगा।तो अगर बंदे ने दिल की गहराई से त़रीक़त वाला ईमान दुनिया में ह़ास़िल किया होगा और रब तबारक व तआ़ला की पहचान रूह़ की गहराई से ह़ास़िल की होगी और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के नूरे पाक को अपने दिल में पहचान कर आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम की तालीमात पर ईमान लाया होगा तो सवालात के जवाब भी बंदा स़ह़ीह़ देगा और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को भी क़ब्र में पहचान लेगा।लेकिन अगर बंदे ने दिल की गहराई से त़रीक़त वाला ईमान दुनिया में ह़ास़िल ना किया होगा(यानी दिल में ईमान उतरा ही ना होगा) सिर्फ ज़ाहिरी शरीअ़त वाले ईमान पर अटक गया होगा और रब तबारक व तआ़ला की पहचान रूह़ की गहराई से ना ह़ास़िल की होगी और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के नूरे पाक को अपने दिल में ना पहचान पाया होगा। तो सवालात के जवाब भी बंदा स़ह़ीह़ नहीं देगा और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को भी क़ब्र में पहचान नहीं पाएगा।
तो मतलब यह कि क़ब्र में भी उसी त़रीक़त वाले ईमान की जांच परख की जाएगी जो फ़ित़री तौर पर पैदाइश के वक़्त और उस के पहले हज़ारों सालों से बंदे के साथ रहा है,कि इस बंदे ने अपने दिल की गहराई में वह ईमान लाया है कि नहीं जो फ़ित़री तौर पर पैदाइश के वक़्त इस के साथ था।
इस सारी बह़स से यह बात खुल कर सामने आ गई कि त़रीक़त पैदा होने के हज़ारों साल पहले से, फिर मां के पेट में, फिर पैदा होते वक़्त फ़िर दुनियावी ज़िंदगी में, फिर मौत के वक़्त, फिर मौत के बाद हमेशा हमेशा के लिए बंदे के साथ है।पैदाइशी है।फ़ित़री है। और शरीअ़ते कामिला के साथ में भी।बल्कि शरीअ़ते कामिला इसी लिए आई कि बंदा त़रीक़त यानी अस़ल ईमान को अगर भूल चुका हो तो शरीअ़ते कामीला को पकड़ कर दोबारा त़रीक़त यानी अस़ल ईमान तक पहुंच जाए।
यह सारी बह़स यहां जो की गई उस से यह भी पता चला कि ख़ास तौर पर वहाबी और आ़म तौर पर दोसरे बदमज़हब जो त़रीक़त या रूह़ानीयत को नहीं मानते उस की वजह यह है कि उनमें "त़रीक़त" या "रूह़ानीयत" (यानी दिल में जो ईमान होता है) वह है ही नहीं।और जब हम लोग "शरीअ़त" और "त़रीक़त" का मतलब अच्छे से बताए बग़ैर यह बोलते हैं कि "शरीअ़त" पहले है और"त़रीक़त" बाद में तो हम लोग ख़ूद को और हमारी आने वाली नस्लों को "त़रीक़त" से यानी "दिल में जो ईमान होता है उस से" अनजाने में दूर करने की कोशिश करते हैं। क्योंकि "शरीअ़ते कामिला" बग़ैर "त़रीक़त"के हो ही नहीं सकती।
तो यह मालूम हुआ कि "त़रीक़त" दरह़क़ीक़त दिल में जो ईमान होता है उस का नाम है।और यह ईमान दुनिया में पैदा होने के भी हज़ारों साल पहले से इंसान की फ़ित़रत में अल्लाह तआ़ला की त़रफ़ से रखा गया है।इस "ईमान" यानी "त़रीक़त" के बग़ैर ज़बानी कलमा पढ़ना, नमाज़ पढ़ना, दुसरे सारे अ़मल सब बेकार हैं।
अब क़ियामत तक के हर इंसान को जो चार ख़ास बातें सीखनी चाहिए उन में की चौथी बात यानी "आयाते मुतशाबिहात की पहचान"इस बारे में इंशाअल्लाहुलअ़ज़ीज़ "फ़ैस़ला ता क़ियामत" सिलसिले की ग्यारहवीं पोस्ट में बयान होगा।अगली पोस्ट पढ़ने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करें...
https://www.gchishti.com/2019/10/1-definition-2-3.html

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