आठवीं पोस्ट--इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमियत--5 (फ़ैसला ता क़ियामत--8)

बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम
नह़मदुहू व नुस़ल्ली व नुसल्लिमु अ़ला रसूलिहिल करीम।
  "इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमियत" के बयान के चौथे ह़िस़्स़े में हमने पढ़ा कि ह़ज़रते उ़मर फ़ारुक़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने तरावीह़ की जमाअ़त को "अच्छी बिदअ़त" फ़रमाया क्योंकि ह़ज़रते उ़मर फ़ारुक़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो के नज़दीक यह तरावीह़ की जमाअ़त क़ुरआन व ह़दीस के मुताबिक़ है, मुख़ालिफ़ नहीं।
चुनांचे वह बात जो दीने इस्लाम में पहले से मौजूद है, उसे और बढ़ाना बिल्कुल जाएज़ है।जैसे कि तरावीह़ की नमाज़ इस्लाम में पहले से मौजूद थी और ह़ज़रते उ़मर फ़ारुक़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने उस की जमाअ़त क़ायम कर के उसे और बढ़ा दिया।ऐसी नई बातें निकालने की दीने इस्लाम में ना सिर्फ इजाज़त है बल्कि उस पर बहुत बड़े सवाब की बशारत भी है।चुनांचे...
 तिरमिज़ी शरीफ़ में इ़ल्म के बयान में हज़रत जरीर बिन अ़ब्दुल्लाह रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से रिवायत है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया जिस ने अच्छा त़रीक़ा जारी किया और उस में उसकी इत्तेबाअ़ की गई यानी उस नये त़रीक़े पर अ़मल किया जाने लगा तो उस के लिए भी उस के मुत्तबेई़न(यानी उस नये त़रीक़े पर अ़मल करने वालों) के बराबर सवाब होगा और उनके सवाब में कोई कमी नहीं आएगी।जबकि अगर किसी ने बुराई के किसी त़रीक़े को रिवाज दिया और लोगों ने उस की इत्तेबाअ़ यानी पैरवी की तो उसे भी उतना ही गुनाह होगा जितना उस की इत्तेबाअ़ करने वालों के लिए और उन के गुनाह में कोई कमी नहीं आएगी।(ह़ज़रत इमाम तिरमिज़ी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह फ़रमाते हैं)इस बाब में ह़ज़रते ह़ुज़ैफ़ह रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से भी रिवायत है और यह ह़दीस ह़सन स़ह़ीह़ है।
इस ह़दीस शरीफ़ में अच्छे रिवाज का सरकारे दो आ़लम रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने जो ज़िक्र फ़रमाया है उसी को ओ़लमाए कराम अच्छी बिदअ़त (बिदअ़ते ह़स्नह) फ़रमाते हैं।
अच्छी बिदअ़त की पहचान:-अच्छी बिदअ़त की पहचान यह है कि वह किसी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को नहीं मिटाती।बल्कि अच्छी बिदअ़त सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को बढ़ाती है।जैसे मुर्दे को दफ़न करने के बाद क़ब्र पर अज़ान देना।अज़ान देने के पहले या बाद में दरूद शरीफ़ पढ़ना।
और इसी ह़दीस शरीफ़ में सरकारे दो आ़लम रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने जो नये और बूरे रिवाज का ज़िक्र फ़रमाया है उसी को ओ़लमाए कराम बूरी बिदअ़त, बिदअ़ते सय्यिआ (बिदअ़ते क़बीह़ा) फ़रमाते हैं।ख़राब बिदअ़त की पहचान यह है कि वह किसी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को मिटाती है।शरीअ़त के अह़काम से टकराती है।मिसाल के त़ौर पर बदमज़हब यानी ग़ैर सुन्नी फ़िरक़े।
चुनांचे शरीअ़ते कामिला की इस़्तिलाह़ में बिदअ़ते क़बीह़ा(बिदअ़ते सय्यिआ) का मतलब होता है "ख़िलाफ़े सुन्नत"।
इस जगह अब "क़ियास" का मतलब साफ़ समझ में आ सकता है कि किसी भी नये काम की तफ़्तीश इस तरह की जाए कि यह नया काम किसी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को बढ़ा रहा है या किसी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को मिटा रहा है,अगर वह नया काम किसी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को बढ़ाता है तो वह नया काम बिदअ़ते ह़स्नह यानी जाएज़ है और अगर वह नया काम किसी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को मिटाने वाला है तो बिदअ़ते क़बीह़ा(बिदअ़ते सय्यिआ) यानी नाजाएज़ है।
चुनांचे यह क़ुरआन पाक जो किताब की शक्ल में हम देखते हैं यह सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के ज़मान-ए-पाक में ऐसी किताब की शक्ल में नहीं था।यह अलग अलग स़ह़ाबह रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न के पास उन रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न के सीनों में या उन रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न के पास अलग अलग जगहों पर लिखा हुआ रखा था।जब मुस्लीमह कज़्ज़ाब के ख़िलाफ़ यमामा का जिहाद हुआ,तो उस में ह़ज़ारों स़ह़ाबह रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न शहीद हुए।जब ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़े आ़ज़म रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो को इस बात की ख़बर हुई तो वह रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के पहले ख़लीफ़ह ह़ज़रते अबूबकर सिद्दीक़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो के पास आए और अ़र्ज़ किया जंगे यमामा में बहुत बड़ी तादाद में क़ुरआन पाक के क़ारी, ह़ाफ़िज़ शहीद हुए हैं अगर यूंही क़ुरआन पाक के क़ारी, ह़ाफ़िज़ शहीद होते रहे तो क़ुरआन करीम कहीं ज़ाएअ़ न हो जाए(गुम न हो जाए) कि क़ुरआन करीम का कोई ह़ाफ़िज़ ही ना रहें,इस लिए मेरी राय यह हुई कि मैं आप रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो को क़ुरआन पाक जमा करने का मशवरा दूं।यह सुन कर ह़ज़रते अबूबकर स़िद्दीक़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने फ़रमाया जो काम नबी स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने नहीं किया वह काम मैं रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो कैसे करूं।यानी ह़ज़रते अबूबकर स़िद्दीक़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो इस काम पर ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़े आ़ज़म रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से बह़स करने लगे कि यह काम बिदअ़ते क़बीह़ा तो नहीं।लेकिन ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़े आ़ज़म रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो लगातार असरार फ़रमाते रहे और अ़र्ज़ किया कि यह काम सरासर ख़ैर ही ख़ैर है।यानी इस बात पर ज़ोर देते रहे कि यह काम बिदअ़ते ह़स्नह है।यानी यह काम रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो त़आ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की दी हुई चीज़ यानी क़ुरआन पाक को बाक़ी रखेगा,मिटने नहीं देगा।यहां तक कि ह़ज़रते अबूबकर स़िद्दीक़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो फ़रमाते हैं कि अल्लाह तआ़ला ने इस मसले पर मेरा भी शरह़ स़दर फ़रमा दिया यानी मेरा भी सीना खोल दिया और मेरी भी राय वही हो गई जो ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़े आ़ज़म रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो की थी।चुनांचे ह़ज़रते अबूबकर स़िद्दीक़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने ह़ज़रते ज़ैद इब्ने साबित रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो को बुलवाया और फ़रमाया कि आप रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो कातिबे वह़ी भी रह चूके हो, सच्चे भी हो, क़ुरआन पाक को एक जगह जमा करने का काम आप किजिए।और उसके बाद क़ुरआन पाक जमा करने का काम ह़ज़रते ज़ैद इब्ने साबित अंसारी रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने पचहत्तर स़ह़ाबह कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न को साथ में लेकर किया।
तो इससे यह साफ़ तौर पर मालूम हुआ कि स़ह़ाबह कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न ने बहुत सोच समझ कर क़ुरआन पाक एक जगह जमा किया।और क़ियामत तक के लिए बिदअ़ते ह़स्नह की एक मिसाल भी दी।
तो सुन्नी यानी अहले सुन्नत वल जमाअ़त के लोग इजतेहाद और क़ियास कर के ह़ज़रते अबूबकर स़िद्दीक़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो और ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़े आ़ज़म रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो और दोसरे स़ह़ाबह कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न के त़रीक़े पर अ़मल करते हैं।
 अगर अल्लाह रब्बुल इ़ज़्ज़त हिदायत फ़रमाए तो यहां यह बात स़ाफ नज़र आएगी कि दुनिया में सिर्फ दो मसले हैं, एक सुन्नत और दूसरा ख़िलाफ़े सुन्नत (बिदअ़ते क़बीह़ा)।बिदअ़ते ह़स्नह तो सुन्नते रसूल को ही आगे बढ़ाती है।
 चुनांचे एक ह़दीस शरीफ और देखिए जिस में क़ुरआन व ह़दीस के इ़लावह में ग़ौर व फ़िक्र का ह़ुक्म है...
सुनन दारमी शरीफ में मुक़दमे में ह़ज़रते अबू सलमह रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से मरवी यह ह़दीस शरीफ आई है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम से किसी मामले के बारे में पूछा गया जो नया लाह़क़ हुआ था(नया पेश आया था) और उस बारे में किताब(यानी क़ुरआन पाक) व सुन्नत में कोई ह़ुक्म मौजूद नहीं था।तो रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया "इस तरह के मामले में अहले ईमान के इ़बादत गुज़ार लोग(यानी स़ालिह़ीन) जाएज़ा लेंगे।"
मतलब यह की किसी भी नये मसले में अगर क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में नेक ओ़लमाए कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न को अगर कोई खुला ह़ुक्म ना मिले तो अपनी अ़क़्ल से उस मामले का जाएज़ा लेकर अपने इजतेहाद से यह देखें कि इस नये मामले पर अ़मल करने से क़ुरआन व ह़दीस की मुख़ालफ़त तो नहीं होती है।अगर क़ुरआन व ह़दीस की मुख़ालफ़त होती है तो वह काम नाजाएज़ है, और अगर क़ुरआन व ह़दीस की मुख़ालफ़त नहीं होती तो वह काम बिल्कुल जाएज़ है।
दारमी शरीफ़ की इस ह़दीस शरीफ़ में सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने स़ाफ़ तौर पर 
यह बात भी समझा दी कि जो बदमज़हब लोग यह कहते रहते हैं कि जो बात क़ुरआन व ह़दीस में ना मिले वह ग़लत़ है, ऐसा बोलना बिल्कुल झूठ है।बल्कि मसला यह है कि जो बातें क़ुरआन व ह़दीस की मुख़ालफ़त नहीं करतीं वह बिल्कुल जाएज़ हैं, चाहे वह बातें नई हों।चुनांचे इस बारे में एक मशहूर ह़दीस शरीफ और पढ़िए,
तिरमिज़ी शरीफ में ह़ज़रते मआ़ज़ रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से मरवी है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने उन्हें यमन का क़ाज़ी बना कर भेजा तो उन से पूछा कि तुम किस तरह फ़ैसले करोगे।उन्होंने अ़र्ज़ किया कि अल्लाह तआ़ला की किताब क़ुरआन पाक के मुताबिक फ़ैसला करुंगा,आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया अगर वह अल्लाह तआ़ला की किताब में ना हो, उन्होंने अ़र्ज़ किया अल्लाह तआ़ला के रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम की सुन्नत के मुताबिक फ़ैसला करुंगा,आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया अगर सुन्नत में भी ना हो,अ़र्ज़ किया अपनी राय से(क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा के मुताबिक) इजतेहाद करुंगा।आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया "सारी ख़ूबीयां अल्लाह तआ़ला के लिए हैं जिस ने अपने रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के क़ास़िद को यह तौफ़ीक़ बख़्शी।"
इस ह़दीस शरीफ में रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने अपने मुजतहिद व फ़क़ीह स़ह़ाबी रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो के अपनी राय से इजतेहाद करने पर ख़ूशी ज़ाहिर कर के क़ियामत तक के लिए यह क़ानून बता दिया है कि जिस मसले का ह़ल क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में अगर ओ़लमाए कराम को ना मिले तो अपनी अ़क़ल से इजतेहाद यानी क़ियास कर के क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा के मुताबिक़ उस मसले का ह़ल निकालें।सिर्फ यह देखने की ज़रूरत है कि क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा की मुख़ालफ़त ना हो।
चुंकि स़ह़ाबह किराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न इन अह़ादीस को जानते थे, इस लिए वह क़ुरआन पाक व अह़ादीस के मुत़ाबिक़ इजतेहाद करने का ह़ुक्म देते थे।लेकिन साथ ही यह भी बता देते थे की इजतेहाद करने की इजाज़त सिर्फ उन लोगों को है जो इजतेहाद की स़लाह़ीयत रखते हैं।
चुनांचे सुनन निसाई शरीफ में किताब आदाबुल क़ज़ा के बयान में है कि एक दिन लोगों ने ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह इब्ने मसऊ़द रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़नहो से बहुत बातें कीं। उन्होंने फ़रमाया "एक दौर ऐसा था कि हम किसी बात का ह़ुक्म नहीं करते थे और ना ही ह़ुक्म करने के लाएक़ थे।फिर अल्लाह तआ़ला ने हमारी तक़दीर में लिखा था कि हम इस दरजे को पहुंच गए कि जिस को तुम देख रहे हो।पस अब आज के दिन से जिस शख़्स को तुम में से फ़ैसला करने की ज़रूरत पेश आ जाए तो उस को चाहिए कि वह अल्लाह तआ़ला की किताब के मुताबिक ह़ुक्म दे अगर वह फ़ैसला किताबुल्लाह शरीफ में ना मिले तो उसके रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलेही व सल्लम के ह़ुक्म के मुताबिक ह़ुक्म दे, और वह फ़ैसला किताबुल्लाह शरीफ और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलेही व सल्लम के फ़ैसलों में भी ना पाए तो नेक(स़ालिह़ीन) लोगों के फ़ैसले के मुताबिक फ़ैसले दे(नेक ह़ज़रात से इस जगह सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलेही व सल्लम के ज़मानए मुबारक से क़ियामत तक अहले सुन्नत वल जमाअ़त के ओ़लमा ए कराम और औलियाए ए़ज़ाम यानी "इजमाए़ उम्मत" मुराद हैं।)और अगर वह काम ऐसा हो जो कि अल्लाह तआ़ला की किताब में मिले और न ही उस के रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलेही व सल्लम के अह़काम में मिले और ना ही(उस वक्त तक के) नेक ह़ज़रात (स़ालिह़ीन,इजमाए़ उम्मत) के फ़ैसलों में तो तुम (अगर इजतेहाद करके वह मसला ह़ल कर सकते हो तो)अपनी अ़क़्ल व फ़हम से काम लो(यानी इजतेहाद करो)।और(अगर इजतेहाद करके वह मसला ह़ल नहीं कर सकते हो तो)यह ना हो कहो कि मुझे यह शक है, मुझे वह शक है।इसकी वजह यह है कि ह़लाल भी खुला हुआ है और ह़राम भी खुला हुआ यानी ज़ाहिर है,अलबत्ता उन दोनों के दरम्यान कुछ ऐसे काम हैं कि जिन में शुबहा है,(तो अगर तुम इ़ल्मी तौर पर उस मसले को ह़ल नहीं कर सकते तो कुछ भी बोल कर शक शुबहा मत फ़ैलाओ बल्कि)तुम उस काम को छोड़ दो जो तुम्हें शक व शुबहे में मुब्तिला करे।इमाम निसाई रदियल्लाहो तआ़ला अ़नहो फ़रमाते हैं यह रिवायत बहुत उ़मदा है,बहुत उ़मदा है।
निसाई शरीफ़ की इस ह़दीस शरीफ़ में ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह इब्ने मसऊ़द रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने स़ाफ़ त़ौर पर क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा के ए़लावा स़ालिह़ीन के फ़ैस़लों को क़ुबूल करने का भी ह़ुक्म दिया है।साथ ही क़ियामत तक उन लोगों को इज्तिहाद करके मसले निकालने की इजाज़त भी दी है जो क़ुरआन पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा के साथ उनके दौर तक के स़ालिह़ीन, नेक ओ़लमाए कराम के शरीअ़त के फ़ैस़लों की अच्छी जानकारी भी रखते हों।
तो साफ़ मालूम हुआ कि दीने इस्लाम में बुनियादी तौर पर सिर्फ दो मसले हैं एक"सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम" और दोसरा"ख़िलाफ़े सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम"।जो बात सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम हो या सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के मुत़ाबिक़ हो वह "जाएज़" है और जो बात सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के ख़िलाफ़ हो वह "नाजाएज़" यानी बिदअ़ते क़बीह़ा है।
यहां यह बात भी पता चली कि इजतेहाद का असल मतलब व मक़स़द क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में यानी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम में क़ियास करना होता है।
तो क़ियास करना यह एक "जद्दोजहद" करना है,जो क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा यानी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम में सुन्नत और खिलाफ़े सुन्नत को पहचानने के लिए करते हैं।ज़ाहिर है यह काम जो लोग अच्छे जानकार हैं, यानी "क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा" का यानी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम का अच्छा इ़ल्म रखने वाले,साथ ही उनके ज़माने तक जो इजमाए़ उम्मत के ओ़लमा ए किराम गुज़र चुके हैं उनके फ़ैस़लों के अच्छे जानकार हैं, यानी " बड़े ओ़लमाए किराम"हैं वही कर सकते हैं।और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के उम्मत के बड़े ओ़लमाए किराम के गिरोह को "इजमाए़ उम्मत" कहते हैं।यानी क़ियास करने की भी इजाज़त "इजमाए़ उम्मत" को ही है।दुसरों को नहीं।सुबह़ानल्लाह!
उपर जो गुज़रा कि अगर बिदअ़त की स़ह़ीह़ पहचान हासिल हो जाए तो मुसलमानों की सच्ची जमाअ़त की भी पहचान हासिल हो जाएगी, इस की वजह यह है कि मुसलमानों की सच्ची जमाअ़त ह़ुज़ूर मोह़ंम्मदुर्रसूलुल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम की सुन्नत पर क़ाएम रहती है और बिदअ़ते क़बीह़ा से दूर रहती है जब कि नये नये बदमज़हब गिरोह(फ़िरक़े) ख़िलाफ़े सुन्नत को पकड़ कर निकलते रहते हैं।तो जिसे बिदअ़ते क़बीह़ा की स़ह़ीह़ पहचान होती है वह बदमज़हब फिरक़ों को पहचान लेता है कि यह फ़िरक़े बिदअ़ते क़बीह़ा यानी ख़िलाफ़े सुन्नत को पकड़े हुए हैं, और उन के शर से इंशाअल्लाह तआ़ला बचा रहता है।
चुनांचे क़ियामत तक के मुसलमानों पर यह ज़रूरी है कि वह इ़ल्मे फ़िक़ह सीख कर ख़ुसूसन बिदअ़ते ह़स्नह और बिदअ़ते क़बीह़ा के फ़र्क़ का इ़ल्म सीख कर मुसलमानों की सच्ची जमाअ़त की और बदमज़हबों की स़ह़ीह़ पहचान हासिल करें और अपने ईमान की ह़िफा़ज़त करें।
सुबह़ानल्लाह क्या दीन में आसानी है, अगर बिदअ़त का इ़ल्म यानी बिदअ़ते ह़स्नह और बिदअ़ते क़बीह़ा(यानी बिदअ़ते सय्यिआ) की पहचान हो जाए तो इंशाल्लाह तआ़ला पूरा इ़ल्मे फ़िक़ह ही समझ में आजाएगा।
तो यह बात समझ में आई कि क़ियामत तक के लिए दुनिया में सब से बड़ी जेहालत यह है कि इंसान क़ुरआन पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा को मानने का दावा तो करे लेकिन "इजमाए़ उम्मत" और इजमाए़ उम्मत के ज़रीए़ किये जाने वाले  "क़ियास" को छोड़ दे।
"इजमाए़ उम्मत" की अहमियत:-तो बात इस सवाल पर चल रही है कि इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की क्या अहमियत है?तो उसका जवाब हमें यह मिला कि "क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा" में सिर्फ और सिर्फ इजमाए़ उम्मत यह गिरोह ही दखल दे सकता है (यानी निजी तौर पर कोई भी अकेला इंसान अगर क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा से मसला निकालना चाहता हो तो उसे इस बात का इ़ल्म होना ज़रूरी है कि क़ुरआन पाक की जिस आयत में या जिस ह़दीस शरीफ़ में वह ग़ौरो फ़िक्र कर रहा है उस आयत या उस ह़दीस शरीफ़ के बारे में आज तक के इजमाए़ उम्मत ने क्या तफ़सीर और तशरीह़ की है।)क्योंकि "इजमाए़ उम्मत" ह़ुज़ूर मोह़ंम्मदुर्रसूलुल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम की उम्मत में अल्लाह तआ़ला की तरफ़ से मोअ़जिज़ाती (यानी एक चमत्कार के) तौर पर ता क़ियामत रखा गया है और अल्लाह तआ़ला की तरफ़ से इस बात पर मोक़र्रर किया गया है कि क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा की तफ़्सीर व तशरीह़ करे।दोसरों को क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में अपनी राय से दखल देना ह़राम व कुफ़्र है।"क़ियास" भी चुंकि क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में ग़ौरो फ़िक्र करने को ही कहते हैं। इस लिए क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में "क़ियास" करके मसले मसाएल निकालने की इजाज़त भी सिर्फ "इजमाए़ उम्मत" ही को है।
आगे "इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमियत" के बयान के छटे और आख़िरी ह़िस़्स़े में ह़ज़रत मुफ़्ती जलालुद्दीन अह़मद अमजदी रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह की किताब "अनवारुल ह़दीस" में जो "सुन्नत और बिदअ़त" बयान लिखा है, उसे पढ़ना ज़रूरी है इस लिए उसे नक़ल किया गया है।ज़रूर पढ़ें।
अगले बयान को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें...
https://www.gchishti.com/2019/09/6-9.html


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