सातवीं पोस्ट--इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमियत--4 (फ़ैसला ता क़ियामत--7)

बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम
नह़मदुहू व नुस़ल्ली व नुसल्लिमु अ़ला रसूलिहिल करीम।
"इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमियत" की तीसरी क़िस्त में हम ने पढ़ा की क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में सच्चे ईमान वालों की यह निशानी बताई गई है कि  सच्चे ईमान वाले शक वाली बातों से बचने के लिए "क़ियास" कर के खिलाफ़े शरअ़ काम से बचते हैं।अब इस चौथी क़िस्त में "क़ियास" की तअ़रीफ़ और "क़ियास" की ज़रुरत के बारे में पढ़ते हैं।
इ़ल्मे फ़िक़ह का चौथा उसूल "क़ियास" है।यह बात हम सब लोग अच्छे से जानते हैं कि दीने इस्लाम हमें सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के ज़रीए़ मिला है।सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के ज़रीए़ हमें इस्लाम के क़ानून, क़ुरआने पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा की शक्ल में मिले।यानी क़ुरआने पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा को मानना सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम की सुन्नत हुई।तो आक़ा स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने यह बात हमें बता दी है कि अब मेरे बाद कोई और नबी या रसूल अल्लाह तआ़ला की तरफ से मबऊ़स नहीं होगा।यानी अल्लाह तआ़ला की तरफ से नया कोई नबी और दीन नहीं आएगा। यह क़ुरआने पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा ही रहती दुनिया के लिए अल्लाह तआ़ला की बंदगी का रास्ता दिखाएंगे।यानी सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने यह साफ़ बता दिया कि मेरी सुन्नत ही अब क़ियामत तक सब कुछ है।मेरी सुन्नत को छोड़ना अल्लाह तआ़ला के बंदगी के रास्ते को छोड़ना है।इसी लिए सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के दुनिया से ज़ाहिरी तौर पर परदा कर जाने के बाद अल्लाह तआ़ला से डरने वाले हमेशा रसूलल्लाह  स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के त़रीक़े यानी क़ुरआने पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा को दिलोजान से पकड़े रहते हैं।लेकिन रसूलल्लाह  स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के परदा फ़रमाने के बाद नये नये ह़ालात नये नये मामलात पेश आने शुरू हो गए और क़ियामत तक पेश आते रहेंगे।उन ह़ालात में भी सरकार रसूलल्लाह  स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के ह़ुक्म के मुताबिक़ क़ुरआने पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा यानी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम पर ही अ़मल करना है।तो हम लोग सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की राह से ना हटें इस लिए अल्लाह तआ़ला और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने क़ियास नाम का एक क़ानून यहां हमें सिखाया है। जैसा कि आगे के बयानात में कई अह़ादीसे शरीफ़ा आई हैं।
क़ियास करने का मक़सद(ग़रज़ो ग़ायत) ही यह है कि सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम से ना हटा जाए।जैसा कि पहले गुज़रा किसी भी बात को समझने के लिए उसकी तअ़रीफ़(Definition,व्याख्या) समझना सबसे पहले ज़रूरी होता है, इस लिए सबसे पहले क़ियास की तअ़रीफ़ जान लें।चुनांचे...
"क़ियास दरअस़ल एक ख़ास त़रीक़े(यानी Method) का नाम है जिसके ज़रीए़ इस बात की तफ़्तीश(यानी checking) की जाती है कि जो नया मसला(मामला) हमें पेश आया है वह सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के मुवाफ़िक़ है या मुख़ालिफ़।"
चुनांचे अगर वह मामला सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के मुवाफ़िक़ है तो जाएज़ है और अगर वह मामला सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ख़िलाफ़ है तो नाजाएज़।
इस तअ़रीफ़ से यह बात बिल्कुल साफ़ है कि क़ियास करना यह कोई दीन में नई या ग़लत़ चीज़ नहीं है।बल्कि क़ियास कर के ही नये मामलात में ख़िलाफ़े सुन्नत से बच कर नाजाएज़ व ह़राम से दूर रहा जा सकता है।और यही अक़्लमंदी है।
जो बदमज़हब फ़िरक़े क़ियास का इंकार करते हैं वह दरअस़ल सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम पर अ़मल करना ही नहीं चाहते, इस लिए वह क़ियास करना ही नहीं चाहते।
क़ियास तो सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम यानी क़ुरआने पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में ग़ौर व फ़िक्र करने का ही नाम है ताकि हम सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के मुवाफ़िक़ रहें, ख़िलाफ़ ना जाएं।
बहुत ही ख़ास बात:-"क़ियास" यह दरह़क़ीक़त बिदअ़त का मसला है।क़ियास खराब बिदअ़त से बचने के लिए किया जाता है।क़ियास को समझने के लिए आगे का बयान ध्यान से पढ़ें।
स़ह़ीह़ मुस्लिम शरीफ में अमारत और ख़िलाफ़त के बयान में ह़ज़रते ह़ुज़ैफह इब्ने यमान रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से मरवी है कि स़ह़ाबह कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न तो रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम से ख़ैर व भलाई के बारे में सवाल करते थे और मैं बुराई के बारे में(सवाल किया करता था), इस ख़ौफ़ की वजह से कि वह(बुराई अगर) मुझे पहुंच जाए (तो उस से अपना बचाव कर सकूं)।मैं ने अ़र्ज़ किया या रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम हम जाहिलियत और शर(बुराई) में थे,आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम अल्लाह तआ़ला के पास से हमारे पास यह भलाई लाए तो क्या इस भलाई के बाद भी कोई शर यानी बुराई होगी?आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया "हां"।मैं रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने अ़र्ज़ किया क्या उस बुराई के बाद कोई भलाई भी होगी?आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया हां,और उस ख़ैर (भलाई)में कुछ कदूरत (यानी कुछ मिलावट) होगी।मैं ने अ़र्ज़ किया कैसी कदूरत होगी?आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया मेरी सुन्नत के ए़लावा को लोग सुन्नत समझेंगे,और मेरी हिदायत के ए़लावा को लोग हिदायत समझ लेंगे।तू उनको पहचान लेगा और नफ़रत करेगा।मैं ने अ़र्ज़ किया,क्या उस ख़ैर के बाद कोई बुराई होगी।आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया हां, जहन्नम के दरवाजों पर खड़े होकर जहन्नम की तरफ बुलाया जाएगा,जिस ने उनकी दावत को कबूल कर लिया वह उसे जहन्नम में डाल देंगे।मैं ने अ़र्ज़ किया या रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम हमारे लिए उन की स़िफ़त(उन की निशानियां) बयान फ़रमा दें।आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया हां वह ऐसी क़ौम होगी जो हमारे रंग जैसी होगी,और हमारी ज़बान में ही गुफ़्तगू करेगी।मैं ने अ़र्ज़ किया या रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम अगर यह(फ़ितने का दौर) मुझे मिले तो आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम क्या ह़ुक्म फ़रमाते हैं।आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया "मुसलमानों की जमाअ़त" को और उन के इमाम" को लाज़िम कर लेना।मैं ने अ़र्ज़ किया अगर मुसलमानों की कोई जमाअ़त हो ना कोई इमाम।आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया फ़िर "उन तमाम फ़िरक़ों" से अलग हो जाना।अगरचे तुझे मौत के आने तक दरख़्त की जड़ों को काटना पड़े तो उसी ह़ालत में मौत के सुपुर्द हो जाए।
इस स़ह़ीह़ ह़दीस शरीफ में सरकार  स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने कई फ़ितनों के बारे में ख़बरदार फ़रमाते हुए बताया है कि ज़बरदस्त फ़ितनों के दौर में भी ईमान की ह़िफ़ाज़त का ज़रीआ़ मुसलमानों की सच्ची जमाअ़त यानी "अहले सुन्नत वल जमाअ़त" और उन के इमाम के साथ होना है।इस लिए छोटे बड़े हर फ़ितने से बचने के लिए, अपने ईमान की ह़िफ़ाज़त के लिए हर एक मुसलमान को मुसलमानों की सच्ची जमाअ़त यानी "अहले सुन्नत वल जमाअ़त" और "अहले सुन्नत वल जमाअ़त"के नेक ओ़लमा ए कराम और औलियाए ए़ज़ाम रिदवानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न यानी "इजमाए़ उम्मत"की पहचान सीखना ज़रूरी है।क्योंकि मुसलमानों के इमाम आखिर इन्हीं "इजमाए़ उम्मत" में से ही होते हैं।अगर मुसलमानों की जमाअ़त की पहचान का इ़ल्म ही नहीं होगा, तो मुसलमानों की जमाअ़त को पहचानेगा कैसे?
और सरकार  स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने इस स़ह़ीह़ ह़दीस शरीफ़ में सारे ग़लत़ फिरक़ों को छोड़ना ज़रूरी क़रार दिया है, चाहे मरते दम तक सबको छोड़ कर पेड़ों की जड़ों को काटना पड़े।
उपर जो ह़दीस शरीफ़ में गुज़रा कि "मुसलमानों की कोई जमाअ़त हो ना कोई इमाम"तो इस का यह मतलब है कि अगर इत्तेफाक़ से कोई इंसान ऐसे इ़लाक़े में पड़ जाए कि उस इ़लाक़े में सिवाए बदमज़हबों के कोई न हो या सारे पूराने सुन्नी लोग भटक कर बदमज़हब बन चुके हों।या फ़िर दुनिया के ह़ालात इतने ख़राब हो गए हों कि सुन्नी लोग सारी दुनिया में बिखर गए हों तो  तमाम बदमज़हब फ़िरक़ों से अलग हो कर रहने का ह़ुक्म है।इस का यह मतलब हरगिज़ नहीं है कि मुसलमानों की सच्ची जमाअ़त यानी "अहले सुन्नत वल जमाअ़त" के लोग दुनिया से ख़त्म हो जाएंगे।पहले इजमाए़ उम्मत के बयान में वह स़ह़ीह़ अह़ादीस बयान हो चुकी हैं जिन में सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने बताया है कि मेरी उम्मत में जो सच्चा गिरोह रहेगा उसकी निशानी यह है कि वह हर दौर में और हमेशा रहेगा,और इस ह़दीस शरीफ़ में भी"अहले सुन्नत वल जमाअ़त" के लोगों को पहचान कर उन के साथ होने का ह़ुक्म है।
फिर भी अगर यह ख़याल शैतान मरदूद डाले कि मुसलमानों की सच्ची जमाअ़त कि पहचान कठिन है तो यह जान लें कि
रब तबारक व तआ़ला क़ुरआन पाक में इरशाद फ़रमाता है...
لَا یُکَلِّفُ اللّٰہُ نَفۡسًا اِلَّا وُسۡعَہَا ؕ
यानी "अल्लाह तआ़ला किसी जान पर बोझ नहीं डालता मगर उस की त़ाक़त भर"।(सूरह बक़रह शरीफ आख़िरी आयते मुबारक।)
मतलब यह कि अल्लाह तआ़ला किसी भी जान पर उस की त़ाक़त से ज़्यादा बोझ नहीं डालता।यानी ईमान की ह़िफ़ाज़त के लिए अगर इ़ल्मे दीन सीखना और समझना अल्लाह तआ़ला ने फ़र्ज़ किया है तो पहले इतनी ज़ेहनी त़ाक़त भी बंदे को अ़त़ा फ़रमा दी कि बंदा इ़ल्मे दीन सीख और समझ सके।
और सरकार  स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया है...
"दीन आसान है"।(बुख़ारी शरीफ,इ़ल्म का बयान)
अस़ल में अगर कोई शख़्स सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के फ़रमान के मुताबिक़ मुसलमानों की जमाअ़त को और उन के इमाम को पहचानने का इ़ल्म (यानी ईमान की ह़िफ़ाज़त का इ़ल्म) सीखना चाहता है और साथ ही ग़लत़ फ़िरक़ों की पहचान भी सीखना चाहता है तो उसे एक ख़ास इ़ल्म सीखना ज़रूरी है।वह है "बिदअ़त" का इ़ल्म।
अगर इंसान को बिदअ़त का इ़ल्म स़ह़ीह़ मायने में ह़ास़िल हो जाए, और वह बिदअ़त की पहचान ह़ास़िल कर ले तो उसे मुसलमानों की सच्ची जमाअ़त यानी "अहले सुन्नत वल जमाअ़त" की पहचान और ग़लत़ फ़िरक़ों की पहचान का इ़ल्म भी मिल जाएगा।
पूरे इ़ल्मे फ़िक़ह को अगर ग़ौर से देखा जाए तो यह बात नज़र आएगी कि पूरे इ़ल्मे फ़िक़ह का निचोड़ "बिदअ़त का इ़ल्म" है।अगर बिदअ़त की स़ह़ीह़ पहचान ना सीखी तो समझ लेना कि हम ने इ़ल्मे फ़िक़ह ही नहीं सीखा।क्योंकि बिदअ़त की स़ह़ीह़ पहचान के बग़ैर इजतेहाद या क़ियास हरगिज़ नहीं किया जा सकता।किसी भी इ़ल्म को सीखने और समझने के लिए सबसे पहले ताअ़रीफ़(Definition,व्याख्या) समझने की ज़रूरत होती है।अगर बिदअ़त का इ़ल्म सीखना है तो पहले बिदअ़त की ताअ़रीफ़(Definition) समझना ज़रूरी है।
बिदअ़त की ताअ़रीफ़ या किसी भी मसले में जब भी ताअ़रीफ़ की बात आए तो इस बात का पूरा ध्यान रखें कि आ़म तौर पर लुग़त(Dictionary)की ताअ़रीफ़ अलग होती है और शरीअ़त की इस़्तिलाह़ यानी शरीअ़त की लुग़त(Dictionary) में ताअ़रीफ़ कुछ और होती है।गुमराह और बदमज़हब लोग आ़म लोगों को बहकाने और गुमराह करने के लिए आ़म लुग़त की ताअ़रीफ़ बताते हैं और शरीअ़त की लुग़त यानी शरीअ़त की इस़्तिलाह़ी त़ाअ़रीफ़ नहीं बताते। गुमराह और बदमज़हब लोगों का यह एक खतरनाक हथियार है कि वह लोग अच्छी बातों को इसी बहाने बिदअ़त बोल कर मना करते रहते हैं।उन का स़ह़ीह़ तोड़ यह है कि बिदअ़त का आ़म मानी और शरीअ़ते कामिला की इस़्तिलाह़ में बिदअ़त के मतलब को अच्छे से समझ लें।
तो आ़म लुग़त(Dictionary) में बिदअ़त का मतलब होता है दुनिया में नई ईजाद, नया काम, नई बात।जैसे काग़ज़, साइकिल, मोटर साईकिल,पंखे, कार,टेलीफोन, एरोप्लेन, मोबाइल फोन आदि,और भी बहुत से इलेक्ट्रॉनिक के सामान,नई एलोपैथीक दवाएं, यह सब बिदअ़त हैं।क्योंकि यह सब नई ईजाद हैं।लेकिन शरीअ़ते कामिला की इस़्तिलाह़ यानी शरीअ़ते कामिला की लुग़त(Dictionary) में बिदअ़त की तारीफ(Definition) यह है "हर वह काम जो ह़ुज़ूर मोह़ंम्मदुर्रसूलुल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम की ज़ाहिरी ज़िंदगी ए पाक में दीने इस्लाम में ना हो बल्कि बाद में इजाद हुआ हो उसे बिदअ़त कहते हैं"।अब यहां यह बात अच्छे से याद रखने की है कि शरीअ़ते कामिला में बिदअ़त की दो क़िस्में हैं,
पहली:बिदअ़ते ह़स्नह
दोसरी:बिदअ़ते क़बीह़ा(बिदअ़ते सय्यिआ)
तो अगर शरीअ़ते कामिला के ह़िसाब से बिदअ़त की दोनों क़िस्मों का मतलब समझना है तो दो अह़ादीस को अच्छे से समझना पड़ेगा।

पहली ह़दीस शरीफ:-स़ह़ीह़ मुस्लिम शरीफ़ में जुम्आ़ के बयान में ह़ज़रते जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो से रिवायत है रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम जब ख़ुत़बह इरशाद फ़रमाते थे तो आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की आंखें सुर्ख हो जातीं और आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की आवाज़ बुलंद हो जाती और ग़ुस़्स़ा शदीद हो जाता(और यूं मालूम होता) गोया कि आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम किसी ऐसे लशकर से डरा रहे हों कि वह स़ुबह़ या शाम ह़मला करनेवाला है और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम  फ़रमाते कि क़ियामत को और मुझे इस तरह भेजा गया जिस तरह यह दो उंगलियां और शहादतवाली और दरमियानी उंगली मिलाकर फ़रमाते "अम्मा बअ़द, बेहतरीन बात अल्लाह तआ़ला की किताब है और बेहतरीन सीरत मोह़ंम्मद स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की सीरत है और सारे कामों में बदतरीन काम नए नए त़रीक़े हैं(यानी अल्लाह तआ़ला की किताब और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की सीरत के ख़िलाफ़ नए त़रीक़े) और हर बिदअ़त(दीन में नई बात) गुमराही है।फिर सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम फ़रमाते हैं मैं हर मोमिन को उस की जान से ज़्यादा अ़ज़ीज़ हूं,जो मोमिन माल छोड़ कर मरा वह उस के घर वालों के लिए है और जो मोमिन क़र्ज़ या बच्चे छोड़ जाए उस की तरबीयत व परवरिश और उन के ख़र्च की ज़िम्मेदारी मुझ मोह़ंम्मद स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम पर है।"

दुसरी ह़दीस शरीफ:-बुख़ारी शरीफ में रोज़े के बयान में ह़ज़रत अ़ब्दुर्रह़मान इब्ने अ़ब्दुलक़ारी से मनक़ूल है कि मैं रमदानुल मुबारक की एक रात ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़े आ़ज़म रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़नहो के साथ मस्जिद की तरफ निकला।वहां लोगों को देखा कि कोई अलग नमाज़ पढ़ रहा है, कहीं एक शख़्स नमाज़ पढ़ रहा है तो उसके साथ कुछ लोग नमाज़ पढ़ते हैं।ह़ज़रते उ़मर रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने फ़रमाया मेरा ख़्याल है कि इन सब को एक क़ारी पर मुत्तफ़िक़ करूं तो ज़्यादा बेहतर होगा,फिर इसका अ़ज़्म(इरादा) करके उन सबको हज़रत ओबै इब्ने काअ़ब रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो पर जमा कर दिया।(यानी हज़रत ओबै इब्ने काअ़ब रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो को इमाम बना कर माशाअल्लाह तरवीह़ की नमाज़ की जमाअ़त शुरू कर दी।)फिर मैं दुसरी रात में उनके साथ में निकला।लोग अपने क़ारी यानी हज़रत ओबै इब्ने काअ़ब रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो के साथ नमाज़ पढ़ रहे थे।ह़ज़रते उ़मर रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने फ़रमाया यह अच्छी बिदअ़त है।और रात का वह ह़िस़्स़ा यानी आखिरी रात जिस में लोग सो जाते हैं उस से बेहतर है जिस में लोग खड़े हो जाते हैं और शुरुआती ह़िस़्स़े में खड़े होते थे।
पहली स़ह़ीह़ मुस्लिम शरीफ की ह़दीस शरीफ में साफ बताया गया है कि अल्लाह तआ़ला की किताब और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम का त़रीक़ा ही दीन है।और अगर इन के इ़लावह दोसरी कोई नई बात दीन में निकाली गई तो वह गुमराही है।लेकिन दोसरी बुख़ारी शरीफ की ह़दीस शरीफ में ह़ज़रते उ़मर रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने रमदानुल मुबारक में तरावीह़ की जमाअ़त शुरू की और साफ फ़रमाया यह अच्छी बिदअ़त है।
अब दोनों स़ह़ीह़ अह़ादीस में लफ्ज़ बिदअ़त है।सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने जो सारी बिदअ़तों को गुमराही फ़रमाया तो पहले यह साफ तौर पर फ़रमा दिया कि बेहतरीन बात अल्लाह तआ़ला की किताब है और बेहतरीन सीरत मोह़ंम्मद स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की सीरत है।इसी को क़ुरआन व ह़दीस, या किताब व सुन्नत कहते हैं।तो सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम का मनशा व मकस़द साफ ज़ाहिर है कि जो भी नई बात यानी बिदअ़त क़ुरआन व ह़दीस के ख़िलाफ़ होगी वही बिदअ़त गुमराही कहलाएगी।और जो  भी नई बात यानी बिदअ़त क़ुरआन व ह़दीस के मुताबिक होगी वह बिदअ़त अच्छी कहलाएगी।अब चुंकि दीने इस्लाम सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के वसीले से मिला है,दीने इस्लाम को सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने सिखाया है इस लिए दीने इस्लाम को इस की एक एक बात को सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम कहा जाता है।इस लिए दीन में ऐसी किसी भी बात की बिल्कुल भी इजाज़त नहीं है जो कि सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के ख़िलाफ़ यानी सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को मिटाने वाली हो।ह़ुज़ूर स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने इस बारे में साफ़ साफ़ बता दिया है...
 चुनांचे बुख़ारी शरीफ़ में स़ुलह़ के बयान में ह़़ज़रते आ़एशा स़िद्दीक़ा रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहा से रिवायत है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि जिस ने हमारे दीन में कोई ऐसी नई बात निकाली जो दीन में से नहीं है तो वह मरदूद है।(दीन में से नहीं का मतलब सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम में से न हो या सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम के ख़िलाफ़ हो।और क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा दोनों सुन्नत रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम में दाख़िल हैं)
और ह़ज़रते उ़मर फ़ारुक़ रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो को चुंकि दोनों बिदअ़तों का फ़र्क़ अच्छे से मालूम था और आप रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो बिदअ़त के क़ानून को अच्छे से जानते थे इस लिए आप रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने साफ़ फ़रमा दिया कि "यह अच्छी बिदअ़त है"।
क्योंकि यह तरावीह़ की जमाअ़त क़ुरआन व ह़दीस के मुताबिक है, मुख़ालिफ़ नहीं।
यह बयान अभी पूरा नहीं हुआ है। "क़यास"और"बिदअ़त" के बारे में और भी अह़ादीसे शरीफ़ा और जानकारीयां पढ़ने के लिए"इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमियत" की पांचवीं क़िस्त ज़रूर पढ़ें।और उसके लिए यहां निचे क्लिक करें...
https://www.gchishti.com/2019/09/5-8.html

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