छटी पोस्ट--इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमीयत--3 (फ़ैस़ला ता क़ियामत--6)

बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम
नह़मदुहू व नुस़ल्ली व नुसल्लिमु अ़ला रसूलिहिल करीम।
"इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमीयत"इस बयान के पहले दोनों ह़िस़्स़ों में हमें यह बात मालूम हुई कि क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा इजमाए़ उम्मत से बिल्कुल साथ में जुड़े हुए हैं।"इजमाए़ उम्मत"के सिवा किसी को भी क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में दखल देने की इजाज़त नहीं है।बग़ैर "इजमाए़ उम्मत" के क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा से बजाए हिदायत के गुमराही मिलती है।
"इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमीयत"इस बयान के इस तीसरे ह़िस़्स़े में "इ़ल्मे फ़िक़ह" के बारे में क़ुरआन पाक में जो ख़ास आयते मुबारक आई है और उसी के साथ स़ह़ीह़ बुख़ारी शरीफ़ में एक ख़ास ह़दीस शरीफ़ आई है,इंशाअल्लाह तआ़ला उन का ज़िक्र होगा।क़ुरआन पाक की इस आयते मुबारक को अल्लाह तआ़ला का "ह़ुक्मे अव्वल" कहते हैं।क़ियामत तक निकलने वाले बदमज़हब फ़िरक़ों से कैसे बचा जाए,इस बात का ज़िक्र भी इस आयते मुबारक और इस ह़दीस शरीफ़ में मिलता है। कौनसा इंसान अच्छे दिल वाला है और कौनसा इंसान ख़राब दिल वाला है इस का ज़िक्र इस आयते मुबारक और इस ह़दीस शरीफ़ में मिलता है।यह आयते मुबारक और यह ह़दीस शरीफ़ दोनों इ़ल्मे फ़िक़ह का चौथा उस़ूल"क़ियास करना" सिखाते हैं।यह आयते मुबारक और यह ह़दीस शरीफ़ यह बताती हैं कि जो अच्छे दिल वाला होता है वह "क़ियास" को मानता है।
चुनांचे सूरह निसा शरीफ़ में रब तबारक व तआ़ला के ह़ुक्मे अव्वल वाली वह आयते मुबारक यह है...
یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡۤا اَطِیۡعُوا اللّٰہَ وَ اَطِیۡعُوا الرَّسُوۡلَ وَ اُولِی الۡاَمۡرِ مِنۡکُمۡ ۚ فَاِنۡ تَنَازَعۡتُمۡ فِیۡ شَیۡءٍ فَرُدُّوۡہُ اِلَی اللّٰہِ وَ الرَّسُوۡلِ اِنۡ کُنۡتُمۡ تُؤۡمِنُوۡنَ بِاللّٰہِ وَ الۡیَوۡمِ الۡاٰخِرِ ؕ ذٰلِکَ خَیۡرٌ وَّ اَحۡسَنُ تَاۡوِیۡلًا ﴿۵۹﴾
यानी"ऐ ईमान वालो ह़ुक्म मानो अल्लाह का और ह़ुक्म मानो रसूल का और उन का जो तुम में ह़ुकूमत वाले हैं,फिर अगर तुम में किसी बात का झगड़ा उठे तो उसे अल्लाह और रसूल के ह़ुज़ूर रुजूअ़ करो,अगर अल्लाह और क़ियामत पर ईमान रखते हो,यह बेहतर है और इस का अंजाम सबसे अच्छा।"
इस आयते मुबारक में ईमान वालों को अल्लाह तआ़ला के ह़ुक्म यानी क़ुरआन पाक और रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ह़ुक्म यानी अह़ादीसे शरीफ़ा कि अत़ाअ़त के ह़ुक्म के बाद ईमान वालों में जो ह़ुक्म देने की अहलीयत रखते हैं उनकी भी अत़ाअ़त करने का ह़ुक्म दिया गया है।तो जो लोग यह कहते हैं कि हमें सिर्फ क़ुरआन व ह़दीस को मानना है, उन के लिए यहां जवाब है कि अल्लाह तआ़ला ने ख़ूद यहां हमें क़ुरआन व ह़दीस के ए़लावा ईमान वालों में जो ह़ुक्म देने की अहलीयत रखते हैं उनकी भी अत़ाअ़त करने का ह़ुक्म दिया है।अब ज़ाहिर है अल्लाह तआ़ला और रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ह़ुक्मों के ख़िलाफ़ अगर कोई ह़ुक्म देगा तो उस पर तो अ़मल नहीं किया जा सकता।इस लिए स़ाफ़ ज़ाहिर है कि यहां ह़ुक्म वालों से मुराद वह ओ़लमाए किराम हैं जो क़ुरआन पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा का अच्छा इ़ल्म रखते हैं और क़ुरआन पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा के मुत़ाबिक़ ह़ुक्म देते हैं।तो यह ह़ुक्म देने की अहलीयत रखने वाले ओ़लमाए किराम ही"इजमाए़ उम्मत"हैं।
लेकिन इसके आगे इस ह़ुक्मे अव्वल वाली आयते मुबारक में ह़िकमत वाले रब तआ़ला ने क़ियामत तक पैदा होने वाले अपने बंदों पर रह़म फ़रमाते हुए सब लोगों को बहुत बड़े ख़तरे से आगाह फ़रमाया है,जिस की जानकारी हर मुसलमान को होना लाज़मी व ज़रूरी है।(इस लिए इस पोस्ट को ख़ूद भी पढ़ें और इस की लिंक दोसरों से भी शेअर करें।)
चुनांचे रब तबारक व तआ़ला आगे इरशाद फ़रमाता है"फिर अगर तुम में किसी बात का झगड़ा उठे तो उसे अल्लाह और रसूल के ह़ुज़ूर रुजूअ़ करो,अगर अल्लाह और क़ियामत पर ईमान रखते हो"
यानी अगर तुम्हें अपने ईमान की फ़िक्र है तो किसी भी नये मसले में अगर तुम्हारे ओ़लमाए किराम में इख़्तिलाफ़ खड़ा हो जाए तो अपने ईमान की ह़िफा़ज़त के लिए उस नये मसले पर अ़मल करने से पिछे हट जाओ जब तक की वह नया मसला तुम लोगों को पूरी त़रह़ स़ाफ़ समझ में ना आजाए।आगे आख़िर में रब तबारक व तआ़ला पिछे हटने पर बशारत फ़रमाता है"यह बेहतर है और इस का अंजाम सबसे अच्छा।"
दरअस़ल क़ुरआन पाक ह़िकमत वाले रब तआ़ला का ह़िकमत भरा कलाम है।यहां किसी नये मामले में ओ़लमा में इख़्तिलाफ़ के एक ख़ास ख़त़रनाक नतीजे को बताया गया है।इसी लिए अल्लाह तआ़ला ने यहां अपने बंदों से ईमान का ज़िक्र  फ़रमाया है।
दरअस़ल यहां पर यह बताया गया है कि"अहले सुन्नत वल जमाअ़त" की जो सच्चे ईमान वालों की जमाअ़त हमेशा हर ज़माने में क़यामत तक रहेगी उस जमाअ़त में से बदमज़हब काफ़िर गिरोह भी निकल कर अलग होते रहेंगे।लेकिन कोई भी नया गिरोह जब भी निकलेगा तो किसी मामले में क़ुरआन पाक और रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे व आलेही वसल्लम की सुन्नत और अपने से पहले के"अहले सुन्नत वल जमाअ़त"के लोगों  की मुख़ालफ़त की राह से निकलेगा।और उस बदमज़हब गिरोह को बनाने वाले भी आ़लिम ही होंगे जिन्हें लोग सुन्नी समझ रहे होंगे।तो जब वह गुमराह और फ़रेबी ओ़लमा सुन्नते रसूल सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे व आलेही वसल्लम के ख़िलाफ और "अहले सुन्नत वल जमाअ़त" के अ़क़ीदे के ख़िलाफ़ कुछ भी बोलेंगे तो सच्चे सुन्नी ओ़लमाए किराम जो उन को पहचान लेंगे, सारे सुन्नियों को ख़बरदार करने लगेंगे कि "इन गुमराह ओ़लमा की बात क़ुरआन पाक, सुन्नते रसूल सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे व आलेही वसल्लम और अहले सुन्नत वल जमाअ़त के अ़क़ीदे के ख़िलाफ़ है।इस लिए इन गुमराहों की बात हरगिज़ मत मानना।"इस के नतीजे में सच्चे ओ़लमाए किराम और झूटे फ़रेबी ओ़लमा के बीच तनाज़ेआ़ यानी झगड़ा ख़ड़ा हो जाएगा।और आ़म लोग जिन्हें ज़्यादा इ़ल्म नहीं होता शक शुबह में घिर जाएंगे कि कौनसे ओ़लमा सच्चे हैं और कौनसे ओ़लमा झूटे।ऐसी ह़ालत में उस झगड़े वाली बात से पुराने अहले सुन्नत वल जमाअ़त के त़रीक़े की त़रफ़ पलट जाना चाहिए, यह ईमान की ह़िफा़ज़त के लिए अच्छा है,इस का अंजाम अच्छा है।अगर इंसान ह़क़ और बात़िल का फ़ैस़ला किए बग़ैर शक वाले मसले पर अ़मल करने लगेगा तो उसे समझ लेना चाहिए कि उस का दिल ही ख़राब है जैसा कि आगे की ह़दीस शरीफ़ में बताया गया है।चुनांचे...
बुखारी शरीफ में इ़ल्म के बयान में ह़ज़रत नोअ़मान इब्ने बशीर रदीयल्लाहो तआ़ला अ़न्हो से मरवी है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने फरमाया "ह़लाल ज़ाहिर(खुला हुआ, clear) है और ह़राम(भी)ज़ाहिर है।और दोनों के दरमियान में शूबह(शक) कि चीज़ें हैं,जिन को बहुत से लोग नहीं जानते(यानी बहुत से लोग हर ज़माने में ऐसे भी मौजूद रहते हैं जिन को अल्लाह तआ़ला ने इतना इ़ल्म दिया होता है जो शक वाली चीज़ों को पहचानते हैं।आक़ा स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम ने यह भी फरमाया है मेरी पूरी उम्मत कभी गुमराह नहीं होगी।) पस जो शख्स(इतना इ़ल्म नहीं रखता कि यह चीज़ ह़लाल है या ह़राम तो  अगर वह शख़्स) शूबह कि चीज़ों से बचे  तो उस ने अपने दीन और अपनी आबरू को बचा लिया,और जो शख्स शुबहों (कि चीज़ो)में मुब्तिला हो जाए( उस कि मिसाल ऐसे जानवर की है)जैसे कि जानवर शाही चरागाह(बादशाह के जानवरों के चरने कि जगह) के बाहर चर रहा हो जिसके बारे में अंदीशा (खतरा)होता है कि एक दिन उस के अंदर भी दाखिल हो जाए।लोगो आगाह हो जाओ कि हर बादशाह की एक चरागाह है,आगाह हो जाओ कि अल्लाह तआ़ला कि चरागाह अल्लाह तआ़ला कि ज़मीन में उस कि ह़राम कि हुई चीज़ें हैं।खबरदार हो जाओ कि बदन में एक टुकड़ा गोश्त का है,जब वह संवर जाता है तो तमाम बदन संवर जाता है और जब वह खराब हो जाता है तो तमाम बदन खराब हो जाता है,सुनो वह टुकड़ा दिल है।"
तो इस आयते मुबारक और इस ह़दीस शरीफ़ से यहां रब तबारक व तआ़ला का क़ियामत तक के लिए हमें यह क़ानून मालूम हुआ कि जब भी ओ़लमा में इख़्तिलाफ़ का ऐसा ह़ादसा पेश आए और किसी मसले में शक शुबहा खड़ा हो जाए तो फ़ौरन इख़्तिलाफ़ी मसले से हट कर "अहले सुन्नत वल जमाअ़त" के पूराने अ़क़ीदों को कस के पकड़ कर रखना चाहिए।क्योंकि सच्ची जमाअ़त पहले से क़ाएम है और कभी भी क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा के ख़िलाफ़ नहीं जाएगी।चुनांचे इस आयते मुबारक के बताने के मुत़ाबिक़ ऐसा ह़ादसा कई बार पेश आ चूका है।कई बदमज़हब काफ़िर फ़िरक़े निकल चुके हैं,और ऐसे बदमज़हब गिरोह नये नये निकलते रहेंगे।ऐसे वक़्त भी अगर कोई इंसान ह़क़ और बात़िल को पहचान कर उन में ह़क़ जमाअ़त के साथ होने की फ़िक्र ना करे बल्कि ऐसा बोलता रहे कि यह ओ़लमा के झगड़े हैं, हमें इस झगड़े में नहीं पड़ना है, तो वह इंसान सच्चे गिरोह को पहचान कर सच्चों के साथ कैसे हो पाएगा?बल्कि अगर ज़रा सा भी सोच कर देखा जाए तो यह बात स़ाफ़ समझ में आएगी कि इख़्तिलाफ़ी मसले में अच्छे से गौ़रो फ़िक्र और तफ़्तीश कर के उस के जाएज़ या नाजाएज़ होने का फ़ैस़ला करना ज़रूरी है।इस से इस बात का खुलासा हो जाएगा कि कौनसा गिरोह ह़क़ पर है और कौनसा गिरोह बात़िल पर।
इस अल्लाह तआ़ला के ह़ुक्मे अव्वल वाली आयते मुबारक में अल्लाह तआ़ला ने क़ियामत तक के मुसलमानों को चुंकि बदमज़हबों से ख़बरदार रहने और बचने का त़रीक़ा बताया है इस लिए यह बयान यहां लिखना ज़रूरी था।अब आगे क़ियास का बयान...
उपर जो बुख़ारी शरीफ़ की ह़दीस शरीफ़ गुज़री उस से यह मतलब हरगिज़ ना लें कि हमें शक करने से मना किया गया है बल्कि यह आयते मुबारक और यह ह़दीस शरीफ़ शक करने और शक करके मशकूक(शक वाली चीज़ों) से बचने का ह़ुक्म दे रही हैं।मशकूक चीज़ों से ना बचने पर तुम्हारा दिल ख़राब है यह बता रही हैं।और मशकूक चीज़ों से बचने पर बहतरीन अंजाम की बशारत दे रही हैं।चुनांचे जो इंसान इस आयते मुबारक और इस ह़दीस शरीफ़ पर अ़मल करते हुए शक करता है वही नाजाएज़ व ह़राम से बचने के लिए "क़ियास" करता है और क़ियास कर के नाजाएज़ व ह़राम बातों से बच जाता है।इसी लिए बदमज़हब "क़ियास"के मुख़ालिफ़ हैं, क्योंकि उन का मक़स़द नाजाएज़ व ह़राम बातों में लोगों को गिरफ्तार करना होता है।जबकि यह आयते करीमा और यह ह़दीस शरीफ़ "क़ियास" करना सिखाती हैं।
जैसा कि हम पहले की दो पोस्ट में पढ़ चुके हैं क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में "इजमाए़ उम्मत"के सिवा किसी को भी दखल देने यानी मसले मसाएल निकलने की इजाज़त नहीं है।इस अल्लाह तआ़ला के ह़ुक्मे अव्वल वाली आयते मुबारक में भी क़ुरआन पाक और ह़दीस शरीफ़ के साथ "इजमाए़ उम्मत" का ज़िक्र किया गया है।तो कभी कभी "इजमाए़ उम्मत"के सामने ऐसा मसला पेश आ जाता है कि जिस का ज़िक्र क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा में खुल कर नहीं मिलता।उस शक्ल में उस मसले को"इजमाए़ उम्मत"के ओ़लमा किसी ऐसे मसले से मिलाकर ह़ल करते हैं जो उस से मिलता जुलता हो।मिसाल के तौर पर भैंस का अगर दूध पीना है तो क़ुरआन पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा में उस के पीने की सीधे सीधे कोई इजाज़त या ह़ुक्म नहीं मिलता।तो ऐसी स़ूरत में ओ़लमा में इख़्तिलाफ़ खड़ा हो सकता है,शक व शुबह हो सकता है।तो इस आयते मुबारक में अल्लाह तआ़ला का ह़ुक्म है"फिर अगर तुम में किसी बात का झगड़ा उठे तो उसे अल्लाह और रसूल के ह़ुज़ूर रुजूअ़ करो"अल्लाह और रसूल के ह़ुज़ूर रूजूअ़ यानी क़ुरआन पाक व अह़ादीसे शरीफ़ा से मिलाकर देखो।तो अह़ादीस में गाय के दूध पीने का ज़िक्र यानी इजाज़त मिलती है।अब चूंकि भैंस गाय की जिंस(यानी उसी के ज़ात) की है, इस लिए भैंस को गाय के जैसा मान कर भैंस के दूध को "इजमाए़ उम्मत" ने जाएज़ क़रार दीया है।इसी को क़ियास करना कहते हैं।यानी भैंस को गाय पर"क़ियास"किया गया है।तो जो लोग "क़ियास" को जाएज़ नहीं मानते उन को चाहिए कि भैंस का दूध ना पीयें।
दरह़क़ीक़त बदमज़हब ख़राब दिल के होते हैं।इस लिए वह ना "इजमाए़ उम्मत" के साथ होना चाहते हैं और ना "इजमाए़ उम्मत" के "क़ियास"पर अ़मल करना चाहते हैं।लेकिन जो अच्छे दिल का होता है वह अपने ईमान की हमेशा फ़िक्र रखता है।चुनांचे ह़ज़रते ह़ुज़ैफ़ह इब्ने यमान रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़न्हो मुनाफ़िक़ों यानी बदमज़हबों के मामले में रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ख़ास राज़दार थे।उन से ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़े आ़ज़म रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़न्हो पूछा करते थे कि क्या तुम मुझ में मुनाफ़िक़ों (यानी बदमज़हबों वाली) कोई बात पाते हो।अल्लाहो अकबर ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़े आ़ज़म रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़न्हो को रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ज़रीए़ कई बार जन्नत की बशारत मिली फ़िर भी वह कितना ख़ौफ़े ईलाही कर रहे हैं, तो हमारे जैसे गुनाहगारों और कम इ़ल्म वालों को जिन के पीछे बदमज़हब क़िस्म क़िस्म की शैतानी चालों के साथ पड़े हैं, कितना ज़्यादा ख़ौफ़े ईलाही करना चाहिए।इस लिए क़ियास के बारे में हर मुसलमान को जानकारी रखनी चाहिए।
दरह़क़ीक़त "क़ियास" करने का इ़ल्म इतनी अहमियत रखता है कि जो "क़ियास" करने की स़ह़ीह़ जानकारी रखता है वह बदमज़हबों की स़ह़ीह़ पहचान भी सीख लेता है।आगे "फ़ैस़ला ता क़ियामत" सिलसिले की सातवीं और "इ़ल्मे फ़िक़ह में इजमाए़ उम्मत की अहमीयत"इस बयान की चौथी क़िस्त में "क़ियास" की तअ़रीफ़(Definition) के बारे में इंशाअल्लाह बात होगी।https://www.gchishti.com/2019/09/4-7.html

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