दूसरी पोस्ट--सच्चों के साथ हो जाओ--2 (फ़ैसला ता क़ियामत--2)

बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम
नह़मदुहू व नुस़ल्ली व नुसल्लिमु अ़ला रसूलिहिल करीम।
Gumbade khazra Madina Sharif 
"फ़ैस़ला ता क़ियामत" की पहली पोस्ट में जो सवाल किया गया था वह यह था...
सवाल:-क्या फरमाते हैं ओ़लमाए दीन व मुफ्तियाने शरअ़ मतीन इस मस्अले में कि हम आज भी अपनी आंखों से देख रहे हैं और किताबों में भी यह मिलता है कि मुसलमानों में हमेशा हर दौर में बहुत से अलग अलग फिरक़े रहे हैं, जो कि एक दूसरे को काफिर बोलते रहे हैं और आज भी एक दूसरे को काफिर बोलते हैं, तो क्या अल्लाह तआ़ला ने ऐसी कोई खास निशानी बताई है या ऐसा कोई खास क़ानून, क़ाएदा अपने बन्दों को बताया या सीखाया है जिस के ज़रिए अल्लाह तआ़ला के बन्दे यह समझ सकें कि कौनसा फिरक़ा सच्चा और ईमान वालों का है और कौनसे फिरक़े ईमान कि राह से भटके हुए गुमराह या काफ़िर हैं?बताइए और सवाब पाइये।
इस सवाल के बारे में यह बात गुज़री थी कि रब तबारक व तआ़ला ने अपनी कमाल महरबानी से पहले ही क़ुरआन पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा के ज़रीए़ हम लोगों को ख़ूद ही यह बता दिया है कि पिछली उम्मतों की तरह़ इस उम्मत में भी बदमज़हब और मुनाफ़िक़ फ़िरक़े होंगे।

अब इस दोसरी पोस्ट में इस सवाल का जवाब लिखना है और इस बारे में बात करनी है कि अल्लाह तआ़ला ने अपने ह़बीब स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ज़रीए़ हमें यह बताया है कि इस उम्मत में भी पिछली उम्मतों की त़रह़ सच्चे ईमान वालों का एक गिरोह रहेगा और रब तबारक व तआ़ला ने उस गिरोह की निशानियां भी बताई हैं जिस के ज़रीए़ उस गिरोह को पहचाना भी जा सकता है।
चुनान्चे मुस्लिम शरीफ में अमारत और ख़िलाफ़त के बयान में हज़रत अमीर मोआ़वियह रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़नहो से मरवी है कि वह मिम्बर पर बयान फरमा रहे थे : रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया है कि मेरी उम्मत में से एक जमाअ़त हमेशा अल्लाह तआ़ला के हुक्म को क़ायम करती रहेगी, जो उन्हें रुसवा करना चाहेगा या उनकी मुख़ालफ़त करेगा तो उन का(उन के अ़क़ीदे का) कुछ भी नुकसान ना कर सकेगा और वह लोगों पर गालिब रहेंगे।
 दरहक़ीक़त इस मौज़ू पर अहादीस कि किताबों में बीसियों जगह अहादीस मौजूद हैं चुनान्चे तिरमिज़ी शरीफ़ में फ़ितनों के बयान में गुमराह हुकमरानों के मुतअ़ल्लिक हदीसे मुतवातिर आइ है कि
 रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे व आलेही व सल्लम के आज़ाद करदह गूलाम हज़रते सौबान रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़नहो से रिवायत है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने इरशाद फरमाया: मुझे अपनी उम्मत पर गुमराह करने वाले ह़ुकमरानों का डर है,हज़रते सौबान रदीयल्लाहो तआ़ला अ़न्हो फरमाते हैं कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने यह भी इरशाद फ़रमाया कि मेरी उम्मत में हमेशा एक जमाअ़त ह़क़ पर रहेगी और वह अपने दुश्मनों पर ग़ालिब होंगे उन्हें किसी की इआ़नत (मदद)तरक कर देने से कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा,यहां तक कि क़यामत आजाएगी।इमाम तिरमिज़ी रह़मतुल्लाहे तआ़ला अ़लैह फरमाते हैं कि यह ह़दीस शरीफ स़ह़ीह़ है।
और मुस्नद अह़मद शरीफ में स़ह़ीह़ हदीस शरीफ है कि ह़ज़रत अबूहुरैरह रद़ियल्लाहो तआला अ़नहो से मरवी है कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि एक जमाअ़त दीन के मआ़मले में हमेशा ह़क़ पर रहेगी और किसी मुख़ालफ़त करनेवाले की मुख़ालफ़त उसे नुकसान ना पहुंचा सकेगी यहां तक कि अल्लाह तआ़ला का हुक्म आजाएगा यानी क़यामत आजाएगी और वह इसी पर यानी ह़क़ पर क़ायम होगी।
यह सब ह़दीसें स़ह़ीह़ और मोतवातिर के ह़ुक्म में हैं।मोतवातिर ह़दीस शरीफ़ में शक करना कुफ़्र है।इन सभी अह़ादीसे शरीफ़ा में यह बात साफ़ तौर पर बताई गई है कि उम्मते मोह़ंम्मदीयह में सच्चे ईमान वालों की जो एक जमाअ़त रहेगी उस की ख़ास निशानी यह है कि वह हर दौर में हमेशा क़ियामत तक रहेगी।इस जमाअ़त के मुख़ालिफ़ीन भी रहेंगे लेकिन रब तबारक व तआ़ला इस जमाअ़त को अपनी महरबानी से हमेशा रखेगा।
Darbare Gousul aazam Dastageer Radiyallaho Tala Anho
सुबह़ानल्लाह!अल्लाह तआ़ला का दीन मुकम्मल है।अल्लाह तआ़ला ने सिर्फ इतना ही नहीं बताया कि सच्चे ईमान वालों की एक जमाअ़त हमेशा हर दौर में ता क़ियामत रहेगी बल्कि अपना यह क़ानून भी अपने बंदों को बताया है कि सच्चे ईमान वालों की जमाअ़त के साथ जुड़ना फ़र्ज़ है।चुनांचे...
रब तबारक व तआ़ला क़ुरआन पाक में सूरह तौबा शरीफ़ आयत नंबर 119 में इरशाद फ़रमाता है...
یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰہَ وَ کُوۡنُوۡا مَعَ الصّٰدِقِیۡنَ ﴿۱۱۹﴾
यानी
ऐ!ईमान वालो, अल्लाह तआ़ला से डरो और सच्चों के साथ होओ।
और
स़ह़ीह़ बुख़ारी शरीफ़ में फ़ितनों के बयान में और स़ह़ीह़ मुस्लिम शरीफ़ में अमारत और ख़िलाफ़त के बयान में यह ह़दीसे मोतवातिर आई है कि ह़ज़रते इब्ने अ़ब्बास रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहुम फ़रमाते हैं कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया जो आदमी अपने अमीर(यानी सरदार) में कोई ऐसी बात देखे जो उसे नापसंद हो तो चाहिए कि सब्र करे क्योंकि जो आदमी जमाअ़त से एक बालिश्त भर भी जूदा हुआ तो वह जाहिलीयत की मौत मरा।
जाहिलीयत का मतलब वह दौर है जब रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने अ़रब में इस्लाम की तब्लीग़ नहीं की थी और लोग अल्लाह तआ़ला को छोड़कर बुतों की पूजा करते थे।तो सच्चे ईमान वालों की जमाअ़त को ना पहचानना रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के मुत़ाबिक़ काफ़िरों वाली जाहिलीयत है।
तो ईमान वालों की जमाअ़त के साथ होने का ह़ुक्म तो क़ुरआन पाक और ह़दीसे मोतवातिर में है।इस ह़ुक्म का इंकार तो कुफ़्र है।यानी यह रब तबारक व तआ़ला का "फ़ैस़ला ता क़ियामत" है कि सच्चे ईमान वालों की जो जमाअ़त सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ज़मान-ए-मुबारक से क़ियामत तक हर दौर में रहेगी उस के साथ हो जाना।लेकिन बदमज़हब लोग बहकाने और गुमराह करने के लिए यह बातें न बताकर यह बोलते रहते हैं की हमें क़ुरआन व ह़दीस को मानना है।ऐसा बोलने के पीछे उन की नीयत यह होती है कि आ़म लोग जो क़ुरआन पाक व अह़ादीस की बारीकियां नहीं जानते वह लोग उन की बातों में आकर सच्चे ईमान वालों की जमाअ़त का साथ छोड़ दें।यह बदमज़हब जब क़ुरआन व ह़दीस का नाम लेते हैं तो यह नहीं बताते कि हमें क़ुरआन व ह़दीस को सच्चे ईमान वालों की जमाअ़त के अ़क़ीदे के मुत़ाबिक़ मानना है।चुंकि इन की नियत सब को काफ़िर बनाने की है इस लिए यह लोग कहते हैं कि हर शख़्स क़ुरआन व ह़दीस को अपनी अ़क़्ल से समझ सकता है, किसी क़ुरआन व ह़दीस के सिखाने वाले आ़लिम की ज़रूरत नहीं है।जब कि सच्चे ईमान वालों की जमाअ़त के साथ जुड़ने का मतलब ही यह है की क़ुरआन व ह़दीस को सच्चे ईमान वालों की जमाअ़त के अ़क़ीदे के मुताबिक़ माने। (इस बारे में इंशाअल्लाह तआ़ला आइंदा पोस्ट में बात होगी)

एक ख़ास ह़दीसे मोतवातिर और सुनिए...
स़ह़ीह़ बुखा़री शरीफ़ में इ़ल्म के बयान में यह ह़दीसे मोतवातिर आई है कि ह़ज़रत ह़ुमैद बिन अ़ब्दुर्रह़मान रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़नहुम से मरवी है कि मैं ने एक मरतबा ह़ज़रत अमीर मुआ़वियह रद़ियल्लाहो तआ़ला अ़नहो को ख़ुत़बह देते हुए सुना कि मैं ने रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैही व आलिही व सल्लम को यह फ़रमाते हुए सुना कि अल्लाह तआ़ला जिस के साथ भलाई करना चाहता है उस को दीन की समझ इ़नायत फ़रमाता है और मैं तो तक़सीम करने वाला हूं और देता तो अल्लाह तआ़ला ही है(याद रखो कि) यह उम्मत हमेशा अल्लाह तआ़ला के ह़ुक्म पर क़ाएम रहेगी, जो शख़्स इन का मुख़ालिफ़ होगा इन को नुक़सान नहीं पहुंचा सकेगा,यहां तक कि क़ियामत आ जाए।
Dargah Khwaja Garib Nawaz Radiyallaho Tala Anho Ajmer Sharif
इस ह़दीसे मोतवातिर में सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने तीन बातें बताई हैं पहली बात यह कि "अल्लाह तआ़ला जिस के साथ भलाई करना चाहता है उस को दीन की समझ इ़नायत फ़रमाता है"।इस के फ़ौरन बाद सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने दो बातें और फ़रमाईं।जिस में इस बात का फ़ैस़ला फ़रमा दिया गया है कि वह कौन लोग हैं जिन का रब तबारक व तआ़ला भला चाहता है।चुनांचे जो लोग रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम की आगे बताई हुई इन दोनों बातों को समझ कर इन दोनों बातों पर ईमान ले आते हैं,अल्लाह तआ़ला उन्हें दीन की समझ इ़नायत फ़रमाता है।तो सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने यह फ़रमाने के बाद कि "अल्लाह तआ़ला दीन की समझ देता है" फ़ौरन सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने जो बात फ़रमाई वह यह है"मैं तो तक़सीम करने वाला हूं और देता तो अल्लाह तआ़ला ही है"यानी सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम स़ाफ़ स़ाफ़ बता रहे हैं कि दीन कि समझ देता तो अल्लाह तआ़ला है पर उस दीन की समझ को मैं स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम तक़सीम करता हूं, बांटता हूं।अब ज़ाहिर है जो लोग रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम को सच्चा मानेंगे वह यह भी मानेंगे कि रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम दीन की समझ को तक़सीम फ़रमाते हैं।यानी ईमान वाले वही हैं जो रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम को दीन की समझ को तक़सीम फ़रमाने वाला मानते हैं।इसके बाद रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने आख़िर में फ़रमाया "यह उम्मत हमेशा अल्लाह तआ़ला के ह़ुक्म पर क़ाएम रहेगी, जो शख़्स इन का मुख़ालिफ़ होगा इन को नुक़सान नहीं पहुंचा सकेगा,यहां तक कि क़ियामत आ जाए।"यानी सच्चे ईमान वालों की जमाअ़त क़ियामत तक हर दौर में रहेगी।और इस ह़दीसे मोतवातिर के मुताबिक़ सच्चे ईमान वालों की जमाअ़त वही है जो रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम को दीन की समझ को तक़सीम करने वाला मानती हैं।
तो आज का या किसी भी दौर का कोई शख़्स अगर यह जानना चाहता है कि इस उम्मत में कौन सी जमाअ़त सच्चे ईमान वालों की है तो वह शख़्स यह बात देखे कि कौन सी जमाअ़त रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ज़मान-ए-मुबारक से लगातार हर दौर में रही है और रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम को दीन की समझ को तक़सीम करने वाला "क़ासिम"मानती है।
सच्चों की जमाअ़त से जुड़ने के बारे में एक स़ह़ीह़ ह़दीस शरीफ़ और पढ़ीए...
जामेअ़ तिरमिज़ी शरीफ़ में ह़ज़रत इब्ने उ़मर रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहोमा से मरवी है कि ह़ज़रते उ़मर फारूक़े आ़ज़म रदीयल्लाहो तआ़ला अ़नहो ने जाबियह के मुक़ाम पर हम से ख़ित़ाब करते हुए फ़रमाया "ऐ लोगो मैं तुम लोगों के दरमियान रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम का क़ायम मुक़ाम हूं और आप स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया"मैं तुम लोगों को अपने स़ह़ाबह रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न की इत़ाअ़त की वस़ीयत करता हूं फिर उन के बाद आने वालों की यानी ताबई़ने कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न की फिर उन से मुत्तस़िल आने वालों की यानी तबअ़ ताबई़ने कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न की।उस के बाद झूठ रिवाज पकड़ जाएगा यहां तक कि लोग क़सम दिए बग़ैर क़समें खाएंगे।और बग़ैर गवाही त़लब किए गवाही देंगे।ख़बरदार कोई शख़्स किसी औ़रत के साथ ख़िलवत न करे इस लिए कि उन में तीसरा शैतान होता है।जमाअ़त को लाज़िम पकड़ो और इलाहिदगी(यानी जमाअ़त छोड़ कर अकेले होने) से बचो।क्योंकि शैतान एक (अकेले) के साथ जबकि दो से दूर होता है।जो शख़्स जन्नत का वस्त़(बीच का ह़िस़्स़ा) चाहता है उस के लिए जमाअ़त से वाबस्तगी(जुड़े रहना) लाज़मी है।जिस को नेकी से ख़ूशी हो और बुरा करना बुरा मह़सूस हो वही मोमिन है।इमाम तिरमिज़ी रह़मतुल्लाह अ़लैह फ़रमाते हैं कि यह ह़दीस शरीफ़ ह़सन स़ह़ीह़ ग़रीब है।
इस स़ह़ीह़ ह़दीस शरीफ़ में सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने क़ुरआन पाक व अह़ादीस का नाम ना लेकर स़ाफ़ वस़ीयत फ़रमाई कि मेरे स़ह़ाबह कराम रिदवानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न फिर ताबई़ने कराम रिदवानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न फ़िर तबअ़ ताबई़ने कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न कि अत़ाअ़त यानी पैरवी करना।यानी क़ियामत तक जो ईमान वाली जमाअ़त रहेगी उस की एक ख़ास निशानी स़ह़ाबह कराम, ताबई़ने कराम, तबअ़ ताबई़ने कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न की पैरवी करना भी है।तबअ़ ताबई़ने कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न के बाद ख़त़रनाक दौर के बारे में बताया है की लोग झूटे हो जाएंगे।लेकिन यह भी बता दिया की जमाअ़त के साथ जुड़े रहना वरना शैत़ान मरदूद गुमराह कर देगा।तो इस का स़ाफ़ मतलब यह होता है कि झूटे लोगों के मुक़ाबले में सच्चे ईमान वालों की भी एक जमाअ़त क़यामत तक क़ाएम रहेगी।जिस के साथ इस ह़दीस शरीफ़ में जुड़े रहने का ह़ुक्म है।इस ह़दीस शरीफ़ में सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम ने फ़रमाया है "जिस को नेकी से ख़ूशी हो और बुरा करना बुरा मह़सूस हो वही मोमिन है।"यानी सच्चों की जमाअ़त से जुड़ना चुंकि नेकी है इस लिए जो लोग मोमिन(ईमान वाले) हैं उन को सच्चों की जमाअ़त से जुड़ जाने में ख़ूशी होती है।
यहां पर एक ख़ास़ुल-ख़ास मसला सारी ज़िंदगी भर के लिए ज़रूर सीख लें कि क़ुरआन पाक और अह़ादीसे शरीफ़ा में सच्चों की जमाअ़त के साथ होने का ह़ुक्म आया है इस लिए कोई भी इंसान यह बोल कर कि मैं सिर्फ क़ुरआन व ह़दीस को मानता हूं अकेला नहीं रह सकता।बल्कि उसे सच्चे ईमान वालों की जमाअ़त को पहचान कर उस जमाअ़त के साथ होना पड़ेगा, चाहे उसके लिए कितना भी इ़ल्म सीखना पड़े।
"फ़ैस़ला ता क़ियामत" सिलसिले(series) की पहली क़िस्त में यह बात हुई कि रब तबारक व तआ़ला ने अपनी कमाल महरबानी से हमें पहले ही यह बता दिया है कि पिछली उम्मतों की तरह़ इस उम्मत में भी अलग अलग गुमराह फ़िरक़े होंगे।और इस दोसरी क़िस्त में यह बात हुई कि इस उम्मत में एक सच्चा फ़िरक़ा होगा।जिस की ख़ास निशानीयां यह होगीं कि वह सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम के ज़मान-ए-पाक और उस के बाद भी ता क़ियामत हर दौर और हर ज़माने में रहेगा और सरकार स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिही व सल्लम को अल्लाह तआ़ला की अ़त़ा से दीन की समझ को तक़सीम करने वाला"क़ासिम" मानता रहेगा, और स़ह़ाबह कराम, ताबई़ने कराम, तबअ़ ताबई़ने कराम रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न की पैरवी करने वाला यानी उन बुज़ुर्गों के त़रीक़े पर रहेगा।
Gumbad Sharif Hudhur Aalahazrat Rahmatullah Tala Alaih Bareilly Sharif

अब आगे तीसरी क़िस्त से इंशाअल्लाहुलअ़ज़ीज़ इस बारे में बयान होगा कि क़ियामत तक हर मुसलमान को अपने ईमान की ह़िफा़ज़त के लिए कम से कम चार उ़लूम सीखना ज़रूरी है।ख़ास तौर पर इन्हीं चार बातों को ना जानने की वजह से बंदा गुमराह होकर बदमज़हब फ़िरक़ों वाला बन जाता है।अगले बयान को पढ़ने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करें...
https://www.gchishti.com/2019/09/definition-3.html

Post a Comment

0 Comments