सोलहवीं पोस्ट:- इब्ने तैमिया के कुफ़्रिया अक़ाइ़द

बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम

बदमज़हब फिरक़ा अपनी शक्लें बदल बदल कर हर ज़माने में सर उठाता रहा है, और उम्मीद यही है कि क़ियामत तक सर उठाता रहेगा।लेकिन इस की वहाबीयत वाली शक्ल को समझने के लिए एक ख़ास आदमी जिस को वहाबी अपना इमाम मानते हैं उस के बारे में उस के अ़क़ाएद के बारे में जानना ज़रूरी है।उस शख़्स का नाम है अह़मद इब्ने तैमिया।इस के अ़क़ाए़द जानने से वहाबियों के बुनियादी अ़क़ाए़द अच्छे से समझ में आ जाएंगे।


इब्ने तैमिया नामी यह शख़्स सन 661 हिजरी में मुल्के शाम(सीरीया) में पैदा हुआ था।इस शख़्स ने भी झूठ मूठ ख़ुद को ह़ज़रत इमाम अह़मद इब्ने ह़ंबल रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़न्हो का मुक़ल्लिद यानी ख़ुद को ह़ंबली फिरक़े का फ़र्द बना कर पेश किया।जबकि इसके अ़क़ाएद बिल्कुल ग़ैरमुक़ल्लिदाना थे।आज के ग़ैरमुक़ल्लिद वहाबी इसी को अपना इमाम मानते हैं।ग़ैरमुक़ल्लिद वहाबी बोलने को बोलते हैं कि हम क़ुरआन व ह़दीस को मानते हैं लेकिन दरहक़ीक़त इब्ने तैमिया के अ़क़ाएद को ही मानते हैं।इस कि बदअ़क़िदगी का राज़ इस की ज़िंदगी में ही सुन्नी ओ़लमाए किराम ने खोल कर लोगों को ख़बरदार कर दिया था।और इसे क़ैद में भी डाल दिया गया था।हमारे ओ़लमाए किराम ने हर दौर में इस काफ़िर के कुफ़रियह अ़क़ाएद से लोगों को ख़बरदार फरमाया है।चुनानचह ह़ज़रत स़दरुलअफाद़िल सैय्यद नई़मुद्दीन अशरफी मुरादाबादी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह ने और उन के बाद मुफ़्ती जलालुद्दीन अह़मद अमजदी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह ने अपने फ़तवों में इसके कुफ़रियह अ़क़ाएद से लोगों को ख़बरदार फरमाया है।लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है कि यह फ़तावे ज़्यादा आ़म नहीं हैं।इसलिए इस लेख को ख़ुद भी पढ़ें और ज़्यादा शेयर भी करें।इन फ़तावों में जो लिखा है वह पढ़ें और गौ़र करें।

"अल्लाह तआ़ला और उस के रसूल स़ल्लल्लाहो अ़लैही व आलिही व सल्लम कि मदद के साथ।


"जो लोग इब्ने तैमिया कि बहुत तारीफ करते हैं या तो वह लोग गुमराह व बदमज़हब(वहाबी) हैं और या तो उन्हें इब्ने तैमिया के बारे में स़ह़ीह़ मालूमात नहीं कि वह गुमराह और बदमज़हब आदमी था।उस ने बहुत से मसाएल में इजमाए उम्मत के खिलाफ किया, इजमाए उम्मत में फूट डालने की कोशिश की।और दीन में बहुत से फितने पैदा किए।जैसा कि फ़तावा ह़दीसीया में ख़ातिमुल-मुह़द्दीसीन अ़ल्लामह शैख़ शहाबुद्दीन इब्ने ह़जर मक्की रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह फरमाते हैं...


{"इब्ने तैमिया ने बहुत से मसाएल में अहले सुन्नत वल जमाअ़त के ओ़लमाए ह़क़ की मुख़ालफ़त कि है,जिस की निशानदेही ह़ज़रत इमाम ताजुद्दीन सुबकी वग़ैरह ने की है तो जिन मसाएल में इब्ने तैमिया ने अहले सुन्नत वल जमाअ़त के इजमा के ख़िलाफ़ फ़तावे दिये हैं उन में से कुछ यह हैं,ह़ालते ह़ैज़ में त़लाक़ नहीं होती।जिस पाकी(त़हर) में हमबिस्तरी की है उस में भी त़लाक़ नहीं होती।अगर नमाज़ क़स़दन यानी जानबूझकर छोड़ दी जाए तो उस की क़ज़ा वाजिब नहीं।और ह़ालते ह़ैज़ में बैतुल्लाह शरीफ का त़वाफ़ करना जाएज़ है और कोई कफ़्फ़ारा नहीं।और तीन त़लाक़ से एक ही त़लाक़ पड़ती है।और तेल वग़ैरह पतली चीज़ें चूहा वग़ैरह के मरने से नजिस नहीं होतीं।और बाद हमबिस्तरी रात को ग़ुसुल से पहले नफिल नमाज़ पढ़ना जाएज़ है अगरचे शहर में हो।और जो शख़्स इजमाए उम्मत कि मुख़ालफ़त करे उसे काफिर व फ़ासिक़ नहीं क़रार दिया जाएगा।और अल्लाह तआ़ला की ज़ात में तग़य्युर और तबद्दल यानी बदलाव, (changing) होता है।अल्लाह तआ़ला के जिस्म होने और उसके लिए जहत(दिशा)होने और अल्लाह तआ़ला के एक जगह से दोसरी जगह जाने को मानता है।और कहता है कि अल्लाह तआ़ला बिल्कुल अ़र्श के बराबर है ना उस से छोटा है ना बड़ा।और यह भी कहता है कि जहन्नम फ़ना हो जाएगी।और यह भी कहता है कि अंम्बियाए किराम अ़लैहिमुस्सलाम माअ़सूम नहीं हैं।और रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो अ़लैही व आलिही व सल्लम का कोई मरतबा नहीं है उन को वसीला ना बनाया जाए।और रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो अ़लैही व आलिही व सल्लम की ज़ियारत की नीयत से सफ़र करना गुनाह है ऐसे सफ़र में नमाज़ की क़स़र जाएज़ नहीं जो शख़्स ऐसा करेगा रसूलल्लाह स़ल्लल्लाहो अ़लैही व आलिही व सल्लम की शफाअ़त से मह़रूम रहेगा।नऊ़ज़ो बिल्लाहि मिन हाज़िहिल हफ़्वात।"}"


चुनान्चे इब्ने तैमिया के कुफरिया अ़क़ाएद की बूनीयाद पर ख़ातिमुल फ़ुक़हा वल मुह़द्दिसीन अ़ल्लामह शैख़ शहाबुद्दीन इब्ने ह़जर मक्की रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह से जब ज़िक्र किया गया कि इब्ने तैमिया ने सूफ़ियाए किराम पर एअ़तराज़ किया है(अल्लाह वालों में ऐ़ब निकाला है) तो उन्होंने फ़रमाया"इब्ने तैमिया ऐसा शख़्स है कि अल्लाह तआ़ला ने उसे नामुराद कर दिया और गुमराह फ़रमा दिया और उसकी बस़ारत(देखने की त़ाक़त) और समाअ़त(सुनने की त़ाक़त)को ख़त्म फ़रमा दिया।और उस को ज़िल्लत के गढ़े में गिरा दिया।(असल में हिदायत पैदाइशी होती है, अगर वह छूट गई तो आंखों से अल्लाह तआ़ला की निशानियां देख कर अगर यह भी ना हो तो कान से हिदायत की बातें सुन कर इंसान दोबारा हिदायत ह़ास़िल कर सकता है, लेकिन नऊ़ज़ो बिल्लाह तआ़ला अल्लाह तआ़ला ने पैदाइशी हिदायत छीनने के साथ अगर आंखों और कानों पर भी मोहर लगा दी तो सिवाय जहन्नम के गढ़े के कोई ठिकाना नहीं।यहां पर इसी का ज़िक्र है।)और इन बातों की तस़रीह़(अच्छे से बयान) उन इमामों ने फ़रमाई है जिन्होंने उस के अह़वाल(दिल के ह़ालात)के फ़साद और उसके अक़वाल(बातों) के झूठ का पोल खोला है।जो शख़्स इन बातों का तफ़्सीली इ़ल्म ह़ास़िल करना चाहे उसे लाज़िम है कि वह उस इमाम के कलाम को पढ़े,जिन की इमामत व जलालत पर सब ओ़लमाए कराम का इत्तफाक़ है और जो मरतब-ए इजतेहाद पर हैं।(इजतेहाद क़ुरआन पाक और अह़ादीस और अपने से पहले के ओ़लमाए अहले सुन्नत वल जमाअ़त के फ़रमानों में ग़ौर व फ़िक्र करके मसाएल निकालने को कहते हैं।)आगे मरतब-ए इजतेहाद के कुछ ओ़लमाए किराम के नाम हैं, जिन्होंने इब्ने तैमिया की बुराइयां बताई हैं।ह़ज़रत अबुलह़सन सुबकी और ह़ज़रत ताजुद्दीन सुबकी के फ़रज़न्द और ह़ज़रत शैख़ इमाम अज़ुद्दीन बिन जमाअ़ह और उनके वक़्त के शाफ़ई़,मालकी और ह़नफ़ी ओ़लमा रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न की किताबों को पढ़े।और इब्ने तैमिया के एअ़तराज़ात सिर्फ स़ूफ़ियाए किराम यानी अल्लाह वालों रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न ही पर नहीं बल्कि वह तो इस क़दर ह़द से बढ़ गया की अमीरुल मोमेनीन ह़ज़रत उ़मर इबनुल ख़त़्त़ाब और अमीरुल मोमेनीन ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबीत़ालिब रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़नहोमा जैसी मुक़द्दस ज़ातों को भी अपने एअ़तराज़ात का निशाना बना डाला।मआ़ज़ल्लाह तआ़ला उस मरदूद ने कहा ह़ज़रते उ़मर रद़ीयल्लाहो तआ़ला अ़न्हो की बहुत सी ग़ल्तीयां और बड़ी बड़ी बलाएं।और ह़ज़रते अ़ली कर्रमल्लाहो वजहहुल करीम ने तीन सौ से ज़ाएद ग़ल्तीयां कीं।मआ़ज़ल्लाह लाह़ौल व ला क़ू व त इल्ला बिल्लाहिल अ़लीयिल अ़ज़ीम।


दोसरी जगह फ़तावा ह़दीसीया में ख़ातिमुल फ़ुक़हा वल मुह़द्दिसीन अ़ल्लामह शेख़ शहाबुद्दीन इब्ने ह़जर मक्की रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह फ़रमाते हैं"इब्ने तैमिया और उसके शागिर्द इब्ने क़य्यिम जौज़ी की किताबों पर कान रखने से बचो,जिन्होंने अपनी ख़्वाहिशे नफ़्सानी को अपना माअ़बूद (यानी ख़ुदा) बनाया और ख़ुदाए तआ़ला ने उसे रुसवा किया और उसके कान और दिल पर मोहर की और उसकी आंख पर परदा डाला।इसके बाद अब कौन उसे हिदायत करेगा।और बेदीन लोग किस तरह अल्लाह तआ़ला की ह़ुदूद से आगे बढ़े।शरीअ़त की रस्मों से ज़ोर ज़बरदस्ती की।और शरीअ़त और ह़की़क़त की चादर को फाड़ कर यह गुमान किया कि वह अल्लाह तआ़ला की तरफ़ से सीधे रास्ते पर हैं ह़ालांकि ऐसा नहीं है बल्कि वह बदतरीन गुमराही और क़बीह़तरीन ख़स़ाएल(यानी सबसे गंदी आ़दतों)और इंतेहाई बदनस़ीबी और नुक़सान और किज़्ब बोहतान में हैं(यानी दरअसल ख़ुद ग़लत राह पर हैं लेकिन सच्चों को ग़लत बोलते हैं)।अल्लाह तआ़ला उन के मानने वालों को रुसवा करे और उन के जैसे लोगों से ज़मीन को पाक करे।"आमीन!!!!!

ख़ुलासा यह है कि इब्ने तैमिया कि बकवासों का कोई वज़न नहीं बल्कि वह इस क़ाबिल हैं कि गढ़ों और कुओं में फेंक दी जाएं।और इब्ने तैमिया के बारे में यही एअ़तेक़ाद यानी अ़क़ीदा रखा जाए कि वह बिदअ़ती गुमराह दोसरों को गुमराह करने वाला जाहिल और ह़द से बढ़ने वाला है।ख़ुदाए तआ़ला उस से इन्तक़ाम ले और हम सब लोगों को उस की राह और उसके अ़क़ाएद से अपनी पनाह में रखे।आमीन(फ़तावा ह़दीसीया)


और आ़रिफ़ बिल्लाह ह़ज़रत शेख़ अह़मद स़ावी मालकी रह़मतुल्लाह तआ़ला अ़लैह तह़रीर फ़रमिते हैं"इब्ने तैमिया(ख़ुद को) ह़ंबली कहलाता था,ह़ालांकि उस मज़हब के इमामों ने भी उसका रद किया है।यहां तक कि ओ़लमा ने फ़रमाया कि वह गुमराह और दोसरों को गुमराह करने वाला है।(स़ावी जिल्द अव्वल सफा नं.96)"

(बह़वालह फ़तावा स़दरुलअफाद़िल और फ़तावा फ़ैज़ुर्रसूल)

तो वहाबी फ़िर वह चाहे ग़ैरमुक़ल्लिद अपने आप को अहलेह़दीस कहने वाले हों या देवबंदी।दोनों इब्ने तैमिया के अ़क़ाए़द के मानने वाले हैं और क़ुरआने पाक हो या अह़ादीसे शरीफा हों या अल्लाह वालों के फ़रमान हों,तोड़ मरोड़ कर ग़लत़ मतलब निकाल कर इब्ने तैमिया की कुफ़रियह राह चलाने की कोशिश करते हैं।


वहाबियों की एक खूली हुई धोखा धड़ी:-वहाबियों के तीनों मशहूर इमाम अपने आप को मुक़ल्लिद यानी बड़े इमामों के पैरवी करने वाले कहते थे।यानी अह़मद इब्ने तैमिया और मुह़म्मद इब्ने अ़ब्दुल वह्हाब नजदी अपने आप को हंबली मसलक का और इस्माई़ल देहलवी अपने आप को ह़नफ़ी मसलक का मानने वाला बताते थे।लेकिन इन की तालीमात चारों मसलकों के ख़िलाफ़ थी।यहां तक की चारों बड़े इमाम यानी ह़ज़रत इमाम अबू ह़नीफ़ा, ह़ज़रत इमाम शाफ़िई़,ह़ज़रत इमाम मालिक और ह़ज़रत इमाम अह़मद इब्ने ह़ंबल रिद़वानुल्लाहे अ़लैहिम अजमई़न की तक़लीद या पैरवी करना भी ह़क़ीक़त में इन की तालीमात के ख़िलाफ़ है।उस का आंखों देखा नतीजा हमारे सामने ग़ैरमुक़ल्लिदों यानी जो अपने आप को अहले ह़दीस कहते हैं उनकी शक्ल में मौजूद है।अपने आप को देवबंदी कहने वाले वहाबी भी जाने या अनजाने में अल्लाह वालों के त़ौर त़रीक़ों से ख़ुद को दूर रखते हैं।फ़िर आगे चलकर ग़ैरमुक़ल्लिद वहाबी बन जाते हैं।


यहां पर यह बात अच्छे से समझ लें कि दवबंदियत क्या है और देवबंदियत का अस़ल मक़स़द क्या है?जिस त़रह़ वहाबियों के तीनों बड़े पेशवा अह़मद इब्ने तैमिया और मुह़म्मद इब्ने अ़ब्दुल वह्हाब नजदी और इस्माई़ल देहलवी का मक़स़द अहलेसुन्नत वल जमाअ़त को काफ़िर बना कर चारों बड़े इमामों और अल्लाह वालों से दूर करना था वैसे ही देवबंदियत का अस़ल मक़स़द भी अहलेसुन्नत वल जमाअ़त को काफ़िर बना कर चारों बड़े इमामों और अल्लाह वालों से दूर करना है।क्योंकि अगर यह लोग सीधे सीधे यानी डायरेक्ट जा कर यह कहें की अल्लाह वालों को मानना कुफ़्र है,इमामों की तक़लीद भी कुफ़्र है तो आ़म त़ौर पर इन की बातों को नहीं माना जाता इस लिए इन वहाबियों ने अपने पेशवाओं की त़रह़ मक्कारी करते हुए अपने आप को ह़नफ़ी बनाकर पेश किया और धोखा देने के लिए ख़ुद को अल्लाह वालों का माननेवाला, अल्लाह वालों का मुरीद बना कर पेश किया।ताकि अहलेसुन्नत वल जमाअ़त के लोगों को काफ़िर बनाया जा सके।चुनांचे इन की इस धोखा धड़ी से करोड़ों लोग गुमराह हो कर देवबंदी और ग़ैरमुक़ल्लिद वहाबी बन कर काफ़िर हो गए।इन वहाबियों की सैकड़ों साल पुरानी मक्कारी, चालबाज़ी का तोड़ हमें हमारे आक़ा व मौला स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिहि व सल्लम ने पहले ही बता दिया है और वह इस ह़दीस शरीफ़ में है...


"हर मुसलमान मर्द और औ़रत पर इ़ल्मे दीन का सीखना फ़र्ज़ है।"


इस ह़दीस शरीफ़ के बारे में हमारे ओ़लमाए किराम ने बताया है कि जो बातें फ़र्ज़ हैं उनके बारे में इ़ल्मे दीन ह़ास़िल करना फ़र्ज़ है जो बातें वाजिब हैं उनके बारे में इ़ल्मे दीन ह़ास़िल करना वाजिब है और जो बातें नफ़्ल हैं उनके बारे में इ़ल्मे दीन ह़ास़िल करना नफ़्ल है।(और फ़र्ज़ वाजिब नफ़्ल सब सुन्नते रसूल स़ल्लल्लाहो तआ़ला अ़लैहि व आलिहि व सल्लम में दाख़िल हैं।)तो ईमान की ह़िफ़ाज़त यह सब से पहला फ़र्ज़ है।इस लिए ईमान की ह़िफ़ाज़त के लिए ईमान की जानकारी और आदमी काफ़िर कब और कैसे बन जाता है यह जानकारी हर इंसान को सीखना और अहलो अ़याल को सिखाना ज़रूरी है।इसके लिए बहारे शरीअ़त ह़िस़्स़ा अव्वल और नौंवा ह़िस़्स़ा समझ कर पढ़ना चाहिए।


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